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________________ जाणइ जानता है, तया तब पुणं च पुण्य और पावं च पाप बंधं बन्ध च और मोक्खं मोक्ष को जाणइ जानता है। -जीव, अजीव के स्वरूप को भले प्रकार जान लेने से उनकी नाना प्रकार की गतियों का ज्ञान होता है और उनसे पुण्य, पाप, बन्ध, मोक्ष आदि तत्त्वों की जानकारी होती है। जया पुणं च पावं च, बंधं मोक्खं च जाणइ। तया निविंदए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे॥१६॥ जया निविंदए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे। तया चयइ संजोगं, , सन्भिंतरं च बाहिरं॥१७॥ शब्दार्थ-जया जब पुणं च पुण्य और पावंच पाप च और बंधमोक्खं बन्ध, मोक्ष आदि तत्त्वों को जाणइ जानता है तया तब जे जो दिव्वे देवसंबन्धी जे जो माणुसे मनुष्य संबन्धी य और तिर्यंच संबन्धी भोए भोग हैं, उनको निविंदए असार जानता है। जया जब जे जो दिव्वे देवसंबन्धी जे जो माणुसे मनुष्य संबन्धी य और तिर्यंच संबन्धी भोए भोग हैं, उनको निव्विंदए असार जानता है तया तब सभिंतरं च राग, द्वेष आदि अभ्यन्तर सहित बाहिरं पुत्र, कलत्र आदि बाह्य संजोगं संयोगों को चयइ छोड़ता है। ___-पुण्य, पापं, बन्ध, मोक्ष आदि तत्त्वों का ज्ञान हासिल होने से मनुष्य, देव, मानव और तिर्यंच संबन्धी भोगविलासों को तुच्छ समझता है। ऐसी समझ हो जाने से बाह्य और अभ्यन्तर संयोगों का त्याग करता है। "ज्ञान का फल" जया चयइ संजोगं, सन्भिंतरं च बाहिरं। तया मुंडे भवित्ताणं, पव्वइए अणगारियं ॥१८॥ जया मुंडे भवित्ताणं, पव्वइए अणगारियं। तया संवरमुक्किट्ट, धम्मं फासे अणुतरं॥१९॥ शब्दार्थ-जया जब सन्भिंतरं च अभ्यन्तार सहित बाहिरं बाह्य संजोगं संयोगों को चयइ छोड़ता है तया तब मुंडे द्रव्य भाव से मुंडित दीक्षित भवित्ताणं हो करके अणगारियं साधुपन को पव्वइए अंगीकार करता है। " जया जब मुंडे द्रव्य भाव से मुंडित भवित्ताणं हो करके अणगारियं साधुपन को पव्वइए अंगीकार करता है तया तब संवरमुक्टिं उत्तम संवरभाव और अणुत्तरं सर्वोत्तम धम्मं जिनेन्द्रोक्त धर्म को फासे फरसता है। श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ३९
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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