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________________ तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि करतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते? पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। शब्दार्थ-से पूर्वोक्त पंच महाव्रतों के धारक संजय विरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सयंम युक्त, विविध तपस्याओं में लगे हुए और प्रत्याख्यान से पापकर्म को नष्ट करने वाले भिक्खू वा साधू अथवा भिक्खुणी वा साध्वी दिआ वा दिवस में अथवा राओ वा रात्रि में अथवा एगओ वा अकेले अथवा परिसागओ वा सभा में अथवा सुत्ते वा सोते हुए अथवा जागरमाणे जागते हुए वा दूसरी और भी कोई अवस्था में से अग्निकायिक जीवों की जयणा इस प्रकार से करे कि अगणिं वा तपे हुए लोहे में स्थित अग्नि इंगालं वा अंगारों की अग्नि मुम्मुरं वा भोभर की अग्नि अचिं वा दीपक आदि की अग्नि जालं वा ज्वाला की अग्नि अलायं वा जलते हुए काष्ठ की अग्नि सुद्धागणिं वा काष्ठ रहित अग्नि उक्कं वा उल्कापात बिजली आदि अग्निकाय को न उंजिजा ईंधनादि से सींचे नहीं न घट्टेजा चलविचल करे नहीं न भिंदेज्जा छेदन-भेदन करे नहीं न उज्जालेजा एक बार पवन आदि से उजारे नहीं न पज्जालेज्जा बार बार पवन आदि से उजारे नहीं न निव्वावेजा बुझाए नहीं अन्नं दूसरों के पास न उंजावेज्जा ईंधनादि से सिंचे नहीं न घडावेजा चलविचल कराए नहीं न भिंदावेजा. छेदन भेदन करे नहीं न उजालावेजा एक बार उजरवाऐं नहीं न पजालावेजा बारंबार पवन आदि से उजरवाऐं नहीं न निव्वाविजा बुझवाऐ नहीं अन्नं दूसरों को उजंतं वा ईन्धनादिक सेसींचते हुए अथवा घट्टतं वा चलविचल करते हुए अथवा भिंदंतं वा छेदन भेदन करते हुए अथवा उजालंतं वा पवन आदि से बार बार उजारते हुए अथवा पजालंतं वा पवन आदि से बार-बार उजारते हुए अथवा निव्वावंतं वा बुझाते हुए न समणुजाणेज्जा अच्छा समझे नहीं ऐसा भगवान ने कहा, अतएव मैं जावजीवाए जीवन पर्यंत तिविहं कृत कारित अनुमोदित रूप अग्निकायिक त्रिविध हिंसा को मणेणं मन वायाए वचन काएणं कायारूप तिविहेणं तीन योग से न करेमि नहीं करूं न कारवेमि नहीं कराऊं करतं करते हुए अन्नं पि दूसरों को भी न समणुजाणामि अच्छा नहीं समझू भंते! हे गुरू! तस्स भूतकाल में की गई हिंसा की पडिक्कमामि प्रतिक्रमण रूप आलोयणा करूं निंदामि आत्मसाक्षी से निंदा करूं गरिहामि गुरू-साक्षी से गर्दा करूं अप्पाणं अग्निकाय की हिंसा करनेवाली आत्मा का वोसिरामि त्याग करूं! वाउकाय की रक्षा से भिक्खू वा भिक्खुणी वा संजयविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे दिआ वा राओ वा एगओ वा परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा से सिएण वा विहुणेण वा तालियंटेण वा . १. आग में लकड़ी वगेरह डाले नहीं। २. हिलाए नहीं। ३. वायु या फूंक देकर जलाए नहीं। ४. आग के बड़े खंडो को तोड़कर छोटे-छोटे टुकडे करे नहीं। श्री दशवैकालिक सूत्रम् / ३१
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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