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________________ "भविष्य काल का विचार" जया य चयई धम्म, अणजो भोगकारणा। से तत्थ मुछिए बाले, आयई नाव बुझाई॥१॥ अनार्यों जैसी चेष्टा करनेवाला मुनि भोगार्थ साधु धर्म का त्याग करता है तब वह विषयों में मूर्छित अज्ञानी-बाल भविष्य काल को अच्छी प्रकार नहीं समझता/नहीं देखता/नहीं जानता/ "पश्चात्ताप का कारण" जया ओहाविओ होइ, इंदो वा पडिओ छमं। सव्वधम्म-परिब्मट्ठो, स पच्छा परितप्पई॥२॥ जैसे प्रवज्या छोड़कर गृहस्थ बना हुआ व्यक्ति सभी धर्मों से परिभ्रष्ट होकर बादमें पश्चात्ताप करता हैं जैसे इन्द्र देवलोक के वैभव से च्युत होकर भूमि पर खड़ा परिताप पाता है॥२॥ जया अ बंदिमो होइ, पच्छा होइ अवंदिमो। देवया व चुआ ठाणा स पच्छा परितप्पई॥३॥ श्रमण पर्याय में राजादि से वंदनीय होकर जब दीक्षा छोड़ देता है तब अवंदनीय होकर बाद में परिताप करता है। जैसे स्वस्थान से च्युत देवता। ___जया अ पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो। राया व रज-पवन्भट्ठो स पच्छा परितप्पई॥४॥ श्रमण पर्याय में पूज्य बनकर गृहस्थावास में अपूज्य बनकर वैसे परिताप करता है जैसे राज्यभ्रष्ट राजा। जया अ माणिमो होइ, पच्छा होइ अमाणिमो। सिटिव्व कब्बडे छूडो, स पच्छा परितप्पई॥५॥ श्रमण पर्याय में माननीय बनकर गृहस्थ कर्म में अमाननीय बनता है। वह परिताप पाता है, नगरशेठ पद से च्युत छोटे कस्बे मे रखे गये-नगरशेठ के समान। जया अ धेर ओ होई, समझत-जुव्वणो। मच्छव्व गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पई॥६॥ लोह के कांटे पर रखे हुए मांस को खाने की इच्छा से जाल में पड़ा हुआ मत्स्य पश्चात्ताप करता है वैसे ही दीक्षा त्यागी मुनि युवावस्था से वृद्धावस्था को प्राप्त करता है तब कर्म के विपाक को भोगते हुए पश्चाताप करता है॥६॥ जया अ कु-कुरबस्स, कुतत्तीहि विहम्मड। हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पई॥७॥ ... जैसे बंधन से बंधा हाथी पश्चाताप करता है वैसे दीक्षा को छोड़ने के बाद कुटुंब की संताप कराने वाली चिंता से पश्चाताप करता है॥७॥ पुत्त-दार-परीकियो, मोह संताण संतओ। पंकासनो जहानागो, स पन्छा परितप्पई॥८॥ श्री दशवकालिक सूत्रम् / १२६
SR No.022576
Book TitleDashvaikalaik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages140
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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