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________________ २४ कप्पसुत्तं. ४. वियरन्ति, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए . १८. भिक्खू य गणायवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा उवज्झायं वा पवत्ति वा थेरं वा गणिं वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए.ते य से वियरन्ति, एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, ते य से नो वियरन्ति, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए. जत्थुत्तरियं धम्मविणयं. लमज्जा, एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए. १९. गणवच्छेइए य गणायवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता अनं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; कप्पइ गणावच्छेझ्यस्स गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अन्नं
SR No.022571
Book TitleKappasuttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorWalther Schubring
PublisherJivraj Chellabhai Doshi
Publication Year1911
Total Pages58
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bruhatkalpa
File Size4 MB
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