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उत्तराध्ययनसूत्रम् (अध्ययन २९) १२५ केवलिकम्म से खवेइ, त जहा-वेयणिज्ज आउयं नाम गोय; तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिब्वायइ सव्वदुक्खाणमत करेइ ॥ ४१ ॥ पडिरुवयाएण' भते जीवे किं जणयइ ? प० लाघवियं जणयइ, लघुभूए णं जीवे अप्पमत्ते पागडलिंगे पसत्थलिंगे विसुद्धसंमत्ते सत्तसमिइसमत्ते सव्वपाणभूयजोवसत्तेसु वीससणिज्जरुवे अपडिलेहे जिइंदिए विउलतवसमिईसमन्नागए यावि भवइ ॥ ४२ ॥ वेयावच्चेण भते जीवे किं जणयइ ? वे तित्थयरनामगोत्तं कम निबधइ ॥ ४३ ॥ सव्वगुणसंपन्नयाए ण भंते जीवे किं जणयइ ? स० अपुणरावत्तिं जणयइ, अपुणरावत्ति' पत्तए य ण जीवे सारीरमाणसाण दुक्खाण ना भागी भवइ ॥ ४४ ।। वीयरागयाए ण भंते जीवे किं जणयइ ? वी० नेहाणुबधणाणि तण्हाणुबधणाणि य वोच्छिदइ, मणुन्नामणुन्नेसु सद्द-फरिस-रूव-रस-गधेसु चेव विरज्जइ ।। ४५ ।। खतीए ण भते जीवे किं जणयइ ? ख. परीसहे जिणइ ॥ ४६ ॥ मुत्तीए ण भते जीवे किं जणयइ ? मु० अकिंचण जणयइ, अकि चणे य जीवे अत्थलोलाण पुरिसाण अपत्थणिज्जो भवइ ॥ ४७ ॥ अजवयाए ण भंते जीवे कि जणयइ ?