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________________ श्री रत्नसारकुमार - चरित्रम् व्याख्या - यस्य पुरुषस्य धर्मार्थकाममोक्षाणामेषां चतुर्णां वर्गाणां पुरुषार्थानां मध्ये एकोऽपि न विद्यते - नास्ति, तस्यपुरुषस्य जन्म अजागलस्तनस्येव निरर्थकं निष्फलं भवति । भाषायामप्युक्तम् कंचन कामिनी कोय, काम नहिं आवे पछी । काल केरी फाल मांही, गयुं सहु जाणजे ॥ चटक दिवस चार, भटके मूढ गमार । अन्तर विचार यार, सार सो संभालने || बादल घटानी जेम, परिवार विखराये । चांदनी दिवस चार अंतर उतारजे ॥ आजकाल आश मांहि, बीत गयो काल तारो । पाप करी मूढ पछी, अधोगति मानजे ||१|| जन्म्यो जग ते जन जे निजकाम तजी परमारथ काज करे । जन्म्यो जग ते जन जे निजप्राण थकी पर प्राण अधिक धरे । जन्म्यो वलि ते जन जेह थकी शुभ धर्म सुकर्म सदा पसरे । मनमोहन तो जन्मे न मरे, निज ध्यान सुधारसता समरे ||२|| साह्यबी सुखद होय मान तणो मद होय । खमा खमा खुद होय ते तो कशा कामनुं । जुवानी जोर होय एशनो अंकोर होय | दोलतनो दोर होय ए ते सुख नामनुं || 42
SR No.022564
Book TitleCharitra Saptakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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