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________________ श्री बृहद्विद्वद्गोष्ठी कथनरूपा गुणा भवन्ति, तावत्ते सर्वत्राऽऽदराऽनर्हा एव। अत एवैतद्गुणसम्पादनाय तावदेवाऽऽवश्यकत्वं यावद् गुणत्वाय। कश्चिद्धिन्दीकविताकारोऽप्याह --- सीख्यो सब रीतभात, गीत ज्ञान नाद छंद, जोतिस हु सीख मन रहत गरूर में । सीख्यो सब सोदागरी बजाजी सराफी सार, लाखन को फारफेर वही जात पूर में । सीख्यो सब जंत्र, मंत्र, तंत्र, चित्र शिल्पकारी, पिंगल पुराण वेद सीख भयो नूर में । सीख्यो सब वाटघाट, निपट सयानो सूर, बोलवो न सीख्यो ताको सब सीख्यो धूर में||३२|| बात ही कहेसे ज्ञान ध्यान में प्रवीण बने, बात ही कहेसे सब लोक में पूजात है, बात ही वखान तीन लोक में सुजान होत, बडे बडे योगी यति बात ही कहात है। बात कहेसे विष वासक को उतर जात, जाने विन बात मूढ केते दुःख पात है, मंत्र अरु तंत्र सब बात ही के पाठ बने, बात कर जाने तो बात हु करामात है ||३|| येऽवसरोचितकथनं सम्यक्तया जानन्ति, तेषां प्रतिवाक्येषु चामूल्योपदेशाः सन्तिष्ठन्ते, तथातिकृपणान्याय्यनाचारोद्यतान् स्त्रीपुरुषान् सुमार्गे चालयितुं शक्तिशालिनो भवन्तीति। तथा हि___ अथाऽऽसीत् कश्चनातीवलोभवान् भूपः, स च प्रभूतं वित्तं सञ्चिक्ये, किञ्च स तद्धनं स्वपुत्रस्यापि सुखभोगाय न ददाति, न 310
SR No.022564
Book TitleCharitra Saptakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherGuru Ramchandra Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages370
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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