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________________ १०।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ८३ * विवेचनामृतम् * अष्टम अध्याय के प्रारम्भ में ही प्ररूपित है कि बन्धन के पाँच कारण हैं- मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग। इन बन्ध हेतुओं का अभाव होने पर संवर होता है। नौवें अध्याय में कहा भी है- आस्रवनिरोधः संवर आश्रव के निरोध को संवर कहते हैं। वस्तुत: मिथ्यात्व सम्यक्त्व को आवृत्त कर लेता है। मिथ्यात्व तथा दर्शन मोहनीय कर्म के अभाव में मिथ्यादर्शनादि का संवर होता है। तदन्तर निसर्ग अथवा तत्त्वार्थसन्धान से (अधिगम से) तत्त्वार्थश्रद्धा स्परूप सम्यग्दर्शन प्रगट होता है। इसी प्रकार अविरति आदि के विषय में भी समझना चाहिए। मिथ्यादर्शन के कारण से होने वाले बन्ध के अभाव तथा बाँधे हुए कर्मों की निर्जरा से सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति होती है। केवल ज्ञान की उत्पत्ति होती है। संवर और निर्जरा से प्रथम चार घाती कर्मों का क्षय होता है तथा तदनन्तर चार अघातिकर्म वेदनीय, आयुष्य, नाम,गोत्र का क्षय हो जाता है ॥१०-२॥ * मोक्षतत्त्व निरूपणम् * 卐 सूत्रम् - कृत्स्नकर्मक्षयो मोक्षः॥१०-३॥ म सुबोधिका टीका ॥ सम्पूर्णकर्मक्षयलक्षणो मोक्षः। मोक्षावस्था, कर्मणां सर्वथाक्षयरूपिणी वर्तते। सम्पूर्णानां कर्मणां क्षयत्वे सति मोक्षस्य प्राप्तिर्भवति। एतावता मोक्षार्थं सर्वथा कर्मक्षयानिवार्यः। पूर्वं तावत् चतुर्णां घातिकर्मणां क्षयो भवति तदनन्तरम् अर्हस्थिति: संजायते। पुरश्च चतुर्णामपि वेदनीयनाम गोत्रायुष्काणां कर्मणां क्षयात् केवलज्ञानम् उत्पद्यते। तस्मिन् समये केवलिनो भगवत: औदारिक शरीरादपि वियोगो भवति। सर्वेषां जन्मकारणानां कर्मणां सर्वथा क्षयात् न पुनर्जन्मकारणं शिष्यते ॥१०-३॥ मोक्षावस्था, जन्ममरणरहिता भवति सर्वथा सम्पूर्णकर्मक्षात्। * सूत्रार्थ - कृत्स्न-समस्त, कर्मों का क्षय मोक्ष कहलाता है। * विवेचनामृतम् * अष्टकर्मों का सर्वथा क्षय होना मोक्ष कहलाता है। कर्म, आठ प्रकार के होते हैं- चार घाति-ज्ञानावरण, दर्शनावरण मोहनीय तथा अन्तराय के क्षय होने पर अरिहन्त(सर्वज्ञ) अवस्था
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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