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________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे हिंसा करने, झूठ बोलने, चोरी करने तथा प्राप्त विषयों के संरक्षणवृत्ति से क्रूरता उत्पन्न होती है। इसके कारण जो चिन्ता होती है उसे हिंसानुबन्धी स्तेयानुबन्धी तथा विषयानुबन्धी रौद्रध्यान कहते हैं। इस ध्यान के अधिकारी (स्वामी) पांचवें गुणस्थान वाले होते हैं। * अथ धर्मध्यानम् * ॐ मूल सूत्रम् - आज्ञाऽपाय-विपाक संस्थान-विचयाय धर्ममप्रमत्त संयतस्य ॥३७॥ उपशान्त क्षीणकषाययोश्च ॥३८॥ सुबोधिका टीका आज्ञेति। आज्ञापायविपाक संस्थानानां विचारणायै एकाग्रमनोवृत्तिता-धर्मध्यानम्, तत् तु अप्रमत्त संयते संभवति। एतद् धर्मध्यानम् उपशान्तमोहे, क्षीणमोहे गुणस्थानेऽपि सम्भवम्।। * सूत्रार्थ - आज्ञा अपाय, विपाक और संस्थान की विचारणा के लिए चित्तवृत्ति को एकाग्र करना- धर्मध्यान कहलाता है। वह धर्मध्यान, अप्रमत्त संयत में संभव है॥३७॥ वह धर्म-ध्यान उपशान्त मोह तथा क्षीण मोह गुणस्थानों में भी सम्भव हैं। * विवेचनामृतम् * आत्मा को पवित्र करने वाला तत्त्व धर्म कहलाता है। जिस आचरण से आत्मा की विशुद्धि होती है, उसे धर्म कहते हैं। पवित्र विचारों में मन को एकाग्र करना धर्मध्यान कहलाता है। आगमों में धर्म ध्यान के चार प्रकार प्ररूपित है धम्मे झाणे चउव्विहे-पण्णते तं जहा आणा विजए, अवाय विजए, विवाग विजए संठाण विजए। १. आज्ञाविचय - 'विचय' का अर्थ है - निर्णय करना या विचार करना। आज्ञा के सम्बन्ध में चिन्तन करना 'आज्ञा विचय' कहलाता है। वीतराग स्वामी की आज्ञा ही माननीय एवम् आचरणीय है। अर्थात् आज्ञा का अर्थ है- वीतराग परमात्मा धर्म अटल सत्य है "तमेव सच्चं नीसकं जं जिणेहिं पवेइयं" धर्मध्यान का प्रथम भेद है-आज्ञाविचय।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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