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________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ५५ उपादेय होते हैं। अति और रौद्र तो संसार-बन्धन के हेतु होने के कारण दुर्ध्यान हैं, त्याज्य हैं। ॐ सूत्रम् - आर्त्तममनोज्ञानां सम्प्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः॥३१॥ 卐 सुबोधिका टीका आर्तमिति । अमनोज्ञानाम् अमनोहरणां विषयाणां-सम्प्रयोग:=संयोग: अनिष्टः तस्मिन्अनिष्टविषयसंयोगे सति तद्विप्रयोगाय=वियोगाय य: पौन: पुन्येन विचारः क्रियते, तदनिष्ट संयोगनामकम् आर्तध्यानमुच्यते। - अमनोज्ञपदार्थसंयोगे सति तद्वियोगस्य चिन्ता द्विधा भवति। एका चिन्ता संयोगात् पूर्वम् अपरा तु संयोगात् पश्चात्। अनिष्ट संयोगे सति तु तद्वियोगाय चिन्तनं भवति। संयोगात् पूर्व तु अनिष्ट पदार्थ संयोगो मा भूत्-एतत्-प्रकारकं चिंतनमिति दिक्। * सूत्रार्थ - अप्रिय पदार्थ के प्राप्त होने पर उसके वियोग के लिए हमेशा चिन्ता करनाअनिष्ट संयोग नामक पहला आर्तध्यान है॥३१॥ * विवेचनामृतम् * अरमणीय अमनोहर पदार्थों का संयोग होने पर उनके निवारण के सन्दर्भ में सहज रूप से चिन्ता होती है। यह अनिष्टसंयोग निवारणार्थ होने वाली चिन्ता ही अनिष्ट वस्तु संयोग 'आर्तध्यान' कहलाती है। ____ अर्थात् अनिष्ट पदार्थ संयोग के कारण तजन्य कष्ट को दूर करने के लिए जो सतत चिन्ता की जाती है वह अनिष्ट संयोग आर्तध्यान कहलाता है। ॐ मूलसूत्रम् - वेदनायाश्च॥३२॥ 卐 सुबोधिका टीका वेदनायाश्चेति। अमनोज्ञाया:-वेदनाया: - सम्प्रयोगे संयोगे सति तद्वियोगाय तदपनयनाय महुर्मुहुश्चिन्तनं, विप्रयाक्तुं वा चित्तवैकल्यम् आर्तध्यानम् अर्थात् दुःखे समापतिते सति तन्निवारणार्थ सततं चिन्तनम् आर्तध्यानमिति। * सूत्रार्थ - दु:ख (वेदना) के आने पर उसकी निवृत्ति के लिए बारम्बार चिन्तित रहनादूसरा आर्तध्यान कहलाता है।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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