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________________ ४२ ] श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे ज्ञानदर्शन चारित्रोपचारा इति सूत्रेण । चत्वारो भेदा भवन्ति विनयतपसः । तद् यथा ज्ञानविनयः, विनयः, चारित्र विनयः, उपचार विनयश्चेति । [ ९ । १ दर्शन वस्तुत: गुणरूपेण विनयः एक एव तथापि प्रस्तुताश्चत्वारो भेदा विषय दृष्ट्या निरूपिताः । अत्र विपायस्य विषयः मुख्यरूपेण चतुर्धा विभक्तोऽस्ति । तत्र ज्ञान विनयः पञ्चाधा । तद्यथा मतिविनयः, श्रुतविनयः, अवधि विनयः, केवल विनयश्चेति । दर्शन विनयस्तु केवल: ‘सम्यग्दर्शन' विनयरूपः । चारित्रविनयस्तु पञ्चविधः सामायिक विनयः, छेदोपस्थापन - विनयः परिहार शुद्धि विनयः, सूक्ष्म संपराय विनयः तथा यथाख्यात विनयश्चेति । उपचार विनयः स्त्वनेक विधः । * सूत्रार्थ - ज्ञान, दर्शन, चारित्र और उपचार - ये विनय के चार भेद है। * विवेचनामृतम् * प्रायश्चित्त के भेदों का विशद निरूपण करने के पश्चात् क्रमानुसार विनय के भेदों का निरूपण करते हुए सूत्रकार कहते हैं कि विनय के चार भेद होते हैं। उनके नाम है- १. ज्ञान विनय दर्शनविनय ३. चारित्र विनय ४. उपचार विनय । २. गुणरूप में 'विनय' वस्तुत एक ही है किन्तु विषय दृष्टि की अपेक्षा से ये चार भेद वर्णित १. ज्ञान विनय - ज्ञान प्राप्त करना, शास्त्राभ्यास करना तथा ज्ञानाभ्यास को न भूलना - 'ज्ञान विनय' कहलाता है। - २. दर्शन विनय तत्त्व की यथार्थ प्रतीति स्वरूप सम्यग् दर्शन से विचलित न होना, उसके प्रति उत्पन्न होने वाली शंकाओं का समाधान करके नि:शंकभाव से साधना करना ‘दर्शनविनय' कहलाता है। ३. सामायिक आदि चारित्रों में चित्त का समाधान रखना चारित्रविनय कहलाता है। ४. अपने से सद्गुणों में श्रेष्ठ, गुरूजनों आदि के प्रति शिष्ट व्यवहार विनम्र आचरण करना जैसे- उनके सम्मुख जाना, वन्दन करना, उन्हें प्रथमतः आसन प्रदान करना, श्रेष्ठजनों के समागम के समय अपना आसन छोड़कर खड़े होना आदि उपचारविनय कहलाता है।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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