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________________ ३४ ] श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९/१ अतिरिक्त शेष एकादश परिषह वेदनीय कर्मोदय हाने के कारण होते है । ये परिषह कारण के अस्तित्व में रहने के कारण जिन भगवान् में भी संभव है - ऐसा पूर्व में भी प्रतिपादित किया गया है। 5 सूत्रम् - एकोदया भाज्या युगपदेकोनविंशतेः॥६-१७॥ सुबोधिका टीका एकादय इति। एतेषु द्वाविंशतिपरिषहेषु एकस्मिन् जीवे, एकास्मिन् काले एकाद् आरभ्य एकोनविंशति पर्यन्तं परिषहा यथा सम्भवं सम्भवन्ति न तु ततोऽधि का: । युगपद् द्वाविंशति संख्याकाः परिषहाः कथं न भवन्तीति चात्र ज्ञेयम् । परस्परविरुद्धत्वात् शीतोष्ण परिषहौ न सम्भवत: एकस्मिन् जीवे एकस्मिन् काले । एवमेव चर्या - शय्या - - निषद्यासु एस्मिन् जीवे, एकस्मिन् काले द्वयोरभावो भविष्यति। यतो हि चर्या-शय्या - निषद्यासु एकस्मिन जीवे एकस्मिन् काले एकस्याः एव सत्वात्। * सूत्रार्थ - पूर्वोक्त बाईस परिषहों में से एक काल में एक जीव में एक से लेकर उन्नीस - तक के यथासम्भव परिषहों की उपस्थिति होती है। * विवेचनामृतम् * बाईस परिषहों में से यथासम्भव प्राप्त एक से लेकर उन्नीस परिषहों तक एक जीव एक काल में सम्भाव्य है। बाईस के बाईस परिषह कदापि एक जीव में, एक काल में प्राप्तव्य नहीं है। एक साथ बाईस परिषह क्यों नहीं हो सकतें ? इस सम्भावित प्रश्न के उत्तर में कहा गया है। कि शीत-ऊष्ण में परस्पर विरोधिता होने के कारण तथा चर्या - शय्या - निषद्या परिषदों में से एक काल में एक ही हो सकती है। शेष दो का अभाव ही रहेगा। 5 सूत्रम् - सामायिकछदोपस्थाप्य परिहार विशुद्धि सूक्ष्मसंपराय यथाख्यातानि चारित्रम्॥६-१९॥ सुबोधिका टीका सामायिकेति। पन्चविधं चारित्रम् । तद् यथा सामायिक संयमः छेदोपस्थाप्य संयमः, परिहार विशुद्धि संयम:, यथासंख्य संयमश्चेति । संसार हेतु भूतकर्मबन्धयोग्यक्रियाणां निरोधं कृत्वा आत्मस्वरूपलाभाय सम्यग् ज्ञान पूर्वकं प्रवृत्तिर्यत्र क्रियते तच्चारित्रम् ।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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