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________________ ER******************* समर्प वन्दन है अभिनन्दन प्रतिपल, जिनवर ! गुरुवर! कृपानिधान। RR बलिहारी गुरुचरण-शरण का, जिनपथ-दर्शक-ज्योति महान॥ उपकृत है तन, मन, विद्या-धन, संयम की चादर सुकुमार। 'गुरु सुशील' की परम कृपा से, उनको अर्पित यह उपहार।। आस्था के आयाम गुणों के निधान कवित्व के अजस्रोत ज्ञान गुण ओत-प्रोत जैन संघ के गौरव तपागच्छा के वैभव श्री नेमि समुदाय की सौरभ अद्भुत वात्सल्य-अविचल श्रद्धा अणि शुद्ध चारित्र के धनी ( O ) परमोपकारी-भवोदधितारक-परमकृपालु मेरी जीवन नैया के सुकानी परम पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म.सा. के कर-कमलों में सविनय सादर समर्पित. विजय जिनोत्तम सुरि. कृपा छत्र मुझ पर सदा, रखना दीन दयाल। यही जिनोत्तम भावना, रखना पूर्ण कृपाल|| ※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※※
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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