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________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ १५ १४-१६. अशुभ यागों से निवृत्ति तथा शुभयागों में प्रवृत्ति करना, 'काय संयम' कहलाता है। १७. पुस्तकादि उपकरण भी जरूरत के अनुसार ही रखना तथा उनका सादर संरक्षण करना इत्यादि 'उपकरण संयम' कहलाता है। ये संयम के सत्तरह भेद है। ७. तप - शरीर तथा इन्द्रियों को तप द्वारा संयमित करके 'आत्मशुद्धि' करने वाला तत्व 'तप' कहलाता है। तप दो प्रकार का होता है- आभ्यान्तर और बाह्य। इसका वर्णन सूत्र १९-२० में विशद रीति से करेंगे। ८. त्याग - बाह्य अभ्यन्तर उपधि शरीर तथा असन-पनादि आश्रयीभूत दोषों का परित्याग करते हुए योग्य पात्र को ज्ञानादि सद्गुण प्रदान करना 'त्यागधर्म' कहलाता है। अर्थात् बाह्य तथा अभ्यन्तर उपधि में भावदोष का, मूर्छा का त्याग, त्यागधर्म है। अन्न पान-बाह्य उपधि है। देह-शरीर अभ्यन्तर उपधि है तथा क्रोधादि कषाय अभ्यन्तर उपधि है। अनावश्यक उपकरणों का परित्याग करना- अत्यन्त सीमित उपकरणों का अवलम्बन-अनासक्ति भाव से लेना त्याग का अभिन्न अंङ्ग है। ९. आकिञ्चन्य - देह पर तथा साधना के उपकरणों पर ममता का अभाव आकिञ्चन्य धर्म है। अर्थात् शरीर, वस्तु (पुस्तकादि) शिष्य आदि में किसी प्रकार का ममत्व न रखना आकिञ्चन्य धर्म कहलाता है। ममत्व परिग्रह है तथा ममत्व का परित्याग- आकिञ्चन्य है। आध्यात्मिक दृष्टि से ममत्व तथा अममत्व के आधार पर ही वस्तु के होने या न होने का निर्णय होता है। जिसे वस्तु पर तो क्या अपने शरीर पर भी लेशमात्र मोहन हो वह 'आकिञ्चन्य' की श्रेणी में आता है। भले ही उसके पर संयम की आराधना में अत्यन्त सहायक कुछ उपकरण विद्यमान हों। १०. ब्रह्मचर्य - ब्रह्मर्च का साधारण प्रचलित अर्थ है- मैथुनवृत्ति का परित्याग। यद्यपि ब्रह्म यानी आत्मा में चर्य=रमण करना ही 'ब्रह्मचर्य' है। इष्ट वस्तु में राग का और अनिष्ट वस्तु में द्वेष का त्याग करके आत्मा में रमणकरना ब्रह्मचर्य है। ऐसा होते हुए भी यहाँ मैथुनवृत्ति का त्याग विवक्षित है। मैथुनवृत्ति के त्याग रूप ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए वसति आदि नव के त्याग स्वरूप नवगुप्तियों का (नौ वाडों का) तथा ब्रह्मचर्य व्रत की पाँच भावनाओ का का पालन अनिवार्य है।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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