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________________ 1 श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ९ वे क्षमा आदि गुणों के साधन से ही क्रोधादिक दोषों का उपशमन, अभाव हो सकता है। अत: गुण 'संवर के उपाय स्वरूप है। क्षमा आदि दशप्रकार के जब अहिंसा तथा सत्य आदि मूल गुणों के साथ शुद्ध आहारादि प्रकर्ष, उत्तर गुणयुक्त हो तब वे यतिधर्म कहलातें है । अन्यथा वे गुण यति धर्म रूप नहीं हो सकतें है । ९ । १ मूल गुण तथा उत्तर गुणरहित यदि क्षमादि गुण हो तो उसे सामानय धर्म कह सकतें है परन्तु यति धर्म की उच्चकोटि में उसका समावेश नहीं हो सकता है । इस दशविध यति धर्म का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है - १. क्षमा सहनशीलता को क्षमा कहते है । सहनशीलता, तितिक्षा, सहिष्णुता, क्रोधनिग्रह तथा क्षमा ये एकार्थवाची शब्द है। क्षमा = सहिष्णुता । शारीरिक व मानसिक प्रतिकूलता में किसी (व्यक्ति विशेष) के निमित्त बनने पर भी क्रोध न करना, क्षमा (सहिष्णुता) का स्वरूप है। यदि कोई क्रोधातुर हो जाय तो भी उस समय यह विचार करना चाहिए कि क्या इसमें मेरी भूल है? यदि अपनी ही भूल हो तो तत्काल शान्त हो जाना चाहिए। अपनी भूल नहीं हो तो विचार करना चाहिए कि इसमें इतनी बुद्धि नहीं है कि यह मेरी बात को समझ सके। इसलिए उसको तुच्छ बुद्धि जानकर के उसको क्षमा करना चाहिए। + क्रोध के आवेश में मति और स्मृति भंग हो जाती है तथा शत्रुतादि अनेक प्रकार के दोष उत्पन्न हो जातें है। अतएव अहिंसा व्रत के लोप का कारण समझ के क्षमागुण को धारण करना चाहिए। * यदि कोई कटुवचन कहे या परोक्ष में निन्दा करे तो भी जानना चाहिए कि इनका स्वभाव ही ऐसा है। हमें अपने शान्त व अहिंसक स्वभाव में लेश मात्र भी परिवर्तन नहीं लाना चाहिए। क्षमाभावना से अहिंसा - प्रतिष्ठित होती है। किसी भी अहित या अनिष्ट कार्य की उपस्थिति के समय अपने पूर्वकृत कर्म के विपाकों का उदय समझकर शान्तचित्तता बनाए रखनी चाहिए। इस प्रकार के अनेक उत्कृष्ट चिन्तनों के द्वारा अपनी उदार क्षमावृत्ति का परिचय देना चाहिए। क्षमा के साधना के सन्दर्भ में पाँच बिन्दु अनिवार्यतः ध्यातव्य है
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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