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________________ ९।१ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे होता हो तथा सूर्य का प्रकाश पड़ता हो ऐसे मार्ग में भी सावधानी पूर्व धीमी गति से जाना 'ईर्यासमिति' कहलाता है। ___ भाषासमिति - भाषा बोलना। सत्य हितकारी हित, मित सम्भाषण भाषा समिति का विषय है। स्व-पर कल्याण से समन्वित गुणयुक्त वचन बोलना 'भाषा समिति' का अभिन्न स्वरूप है। भाषा समिति के परिपालनार्थ कैसी वाणी का प्रयोग किया जाना चाहिए, उस सन्दर्भ में कहा है महुरं निउणं थोवं, कज्जावडियं अगब्वियमतुच्छं। पुव्विं, मइसकंलियं, भणंति जं धम्म संजुत्तं॥ (उपदेश मालायाम्) ___ विचक्षण पुरूष-मधुर, निपुण, अल्प, कार्य पूर्ण करने के लिए मान-अभिमान रहित, उदार, विचार पूर्वक तथा धर्मयुक्त वचन बोलते है। * एषणा समिति- एषणा=गवेषणा। जीवनयात्रा के लिए आवश्यक निर्दोष चीज वस्तुओं की सावधानी पूर्वक याचना के लिए प्रवृत्त होगा। अर्थात् चारित्र-संयम के निर्वाह के लिए आवास वद्ध, पात्र, आहार, औषध-इत्यादि वस्तुओं की शाद्धोक्त विधि के अनुसार गवेषणा करना ही एषणा समिति' है। उक्त कथन का सांराश यह है कि शाद्धोक्त विधि के अनुसार गवेषणा कर के दोष रहित आहार आदि का जो ग्रहण करना ही वह 'एषणा समिति' है। * आदान-निक्षेप समिति - आदान-ग्रहण॥ निक्षेप रखना। वस्तुमात्र को यत्न पूर्वक प्रमार्जन करके लेना या रखना। चारित्र-संयम के उपकरणों को, नेत्र से देखकर, तथा रजोहरणादि से प्रमार्जन करके ग्रहण करना चाहिए तथा भूमि का भी निरीक्षण-प्रमार्जन करने के पश्चात् कोई वस्तु रखना- 'आदान-निक्षेप समिति' है। * उत्सर्ग समिति - उत्सर्ग = त्याग। अनुपयोगी चीज-वस्तु को जीवाकुल रहित 'निर्वद्य' भूमि में डालना/त्यागना चाहिए। अर्थात्- शास्त्रोक्तविधि के अनुसार जमीन का प्रमार्जन (कीटादि रहित) करके मल आदि का त्याग करना 'उत्सर्गसमिति' है। शास्त्रों में पाँच समिति एवं तीन गुप्तियों को 'अष्टप्रवचनमाता' के नाम से सम्बोधित किया गया है। जिस प्रकार माता, बालक को जनम देती है तथा उसका पालन-पोषण व संरक्षण भी करती है ठीक उस प्रकार पाँचसमिति तीन गुप्ति स्वरूप अष्टप्रवचन माता, प्रवचन=संयम को जन्म देती है रक्षण-पोषण करती है, इतनी ही नहीं अपितु उसे शुद्ध भी बनाती है।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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