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________________ शासन सम्राट के दिव्य पट्टालंकार व्याकरणवाचस्पति-शास्त्रविशारद-साहित्य सम्राट आचार्य श्रीमद् विजयलावण्य सूरीश्वरजी ने त्रिसूत्री प्रकाशिका नाम विशद टीका लिखी है जो कि ४२०० श्लोक प्रमाण है। यह टीका१. उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत् २. तद्भावाव्ययं नित्यम् ३. अर्पितानर्पित सिद्धेः इन तीन सूत्रों पर आधारित है। इन संस्कृत व्याख्या ग्रन्थों के अतिरिक्त हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं में अनेक टीकाएं सम्प्रति विद्यमान है। प्रस्तुत प्रणयन तत्त्वार्थाधिगम सूत्र की गम्भीरता को देखकर आचार्य प्रवर श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वर जी महाराज साहब ने 'सुबोधिकाटीका' संस्कृत भाषा में तथा हिन्दी भाषा में विवेचनामृत द्वारा विषय का सुगम सरल एवं सफल प्रतिपादन किया है जिससे तत्त्वार्थ को समझने में अत्यन्त सुविधा होगी। आचार्य श्री अपने प्रतिदिन के स्वाध्याय में प्रस्तुत तत्त्वार्थ सूत्र की आवृत्ति करते हैं। अत: अनेक स्वानुभूतियों का सहज प्रकाशन भी आपने प्रस्तुत प्रणयन में साधिकार किया है, जिससे विषय सहज सुगम्य हो गया है। वर्तमान समय में प्रचीन संस्कृत व्याख्याएँ दुरूह होती जा रही है। अध्ययन-अध्यापन में पूर्ववत् क्रम परिलक्षित नहीं हो रहा है। अत: अध्येता की आधारशिला कमजोर होती जा रही है। ऐसी परिस्थिति में संस्कृत व्याख्याओं का सरलीकरण तथा हिन्दी भाषा में विवेचन परमावश्यक हो गया है। आचार्य प्रवर संस्कृत-हिन्दी-गुजराती तीनों भाषाओं के ज्ञाता तथा उत्कृष्ट साहित्यकार है। आपश्री ने धार्मिक अनुष्ठान,तपस्त्यागदि जिन शासन प्रभावना के महनीय कार्यों में निरन्तर व्यस्त रहते हुए भी साहित्य-सृजन में दत्तचित्त रहते हुए यह अनुपम ग्रन्थ रत्न तत्त्वार्थ प्रेमियों के लिए समर्पित किया है। आपका यह उत्कृष्ट अवदान शतश: अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय है। यह ग्रन्थ रत्न जिन शासन की शोभा है। साहित्य प्रेमी जिज्ञासु-वृन्द इसकी उपादेयता को विधिवत् समझकर इसका पठन,मनन एवं संग्रहण करेंगे-यह मेरा विश्वास है। विदुषां वशंवदः शम्भुदयाल पाण्डेयः व्याख्याता-संस्कृतम्
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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