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________________ ९२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [१०॥ * सिद्धविषये विशेष-विचारणा * ॐ सूत्रम् - क्षेत्र-काल-गति-लिङ्ग-तीर्थ-चारित्र-प्रत्येकबुद्धबोधित-ज्ञानावगाहनाऽ-न्तर-संख्या-ऽल्पबहुत्वत: साध्या:॥७॥ + सुबोधिका टीका क्षेत्रेत्यादयः। सिद्धस्य द्वादशानु + योगद्वाराणि भवन्ति। तानि चेत्थम्-क्षेत्रम्, काल:, गति:, लिङ्गम्, तीर्थ, चारित्रम्, प्रत्येकबुद्धबोधित:, ज्ञानम्, अवगाहना, अन्तरम्, संख्या, अल्पबहुत्वञ्चेत्यादीनि। एतैादशानुयोगद्वारेः साध्य: सिद्धः चिन्तनीयो व्याख्यातव्यश्चेति। तत्र खलु द्वौ नयौ तावत् प्रख्यातौ- पूर्वभाव + प्रज्ञापनीय:, प्रत्युत्पन्न + भाव + प्रज्ञापनीयश्चेति दिक् । * सूत्रार्थ - क्षेत्र, काल, गति, लिङ्ग, तीर्थ, चारित्र प्रत्येक बुद्धबोधित, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, संख्या, अल्पबहुत्व-नामक बाहर अनुयोगद्वारों (प्रकारों) से सिद्ध ज्ञातव्य हैं, चिन्तनीय है। * विवेचनामृत * क्षेत्र, काल, गति, लिंग, तीर्थ, चारित्र, प्रत्येक बुद्धबोधित, ज्ञान, अवगाहना, अन्तर, संख्या और अल्प बहुत्व-इन बारह अनुयोग द्वारों से सिद्ध का स्वरूप ज्ञान करना चाहिए। ___उसमें पूर्वभाव प्रज्ञापनीय, और प्रत्युत्पन्न भाव प्रज्ञापनीय-इन दो नयों की अपेक्षा से सिद्ध का विचार करते हैं। वस्तुत: श्रीसिद्ध परमात्मा के आत्मशक्ति की अपेक्षा से समान हैं किन्तु यदि किसी प्रकार की विशेषता का विशेष ध्यान रखकर यदि कोई वर्णन करना हो तो पूर्वोक्त इन द्वादश अनुयोग द्वारों का प्रयोग करना चाहिए। इनका विवेचन इस प्रकार समझना चाहिए - १. क्षेत्र - किस क्षेत्र में सिद्ध होते हैं? प्रत्युत्पन्नभाव प्रज्ञापनीय के आश्रय से सिद्धक्षेत्र में सिद्ध होते हैं। पूर्वभाव प्रज्ञापनीय नय की अपेक्षा से जन्म की विवक्षा से सिद्ध होता है तथा संहरण के अपेक्षा से मनुष्य क्षेत्र-स्थितिवाले सिद्ध होते हैं। उनमें प्रमत्त, संयत और देश विरत का संहरण होता है, साध्वी, वेदरहित परिवार-विशुद्धि चरित्रवाला-पुलाक चारित्री अप्रमत्त संयत-पूर्वधर और आहरक शरीर-इनका संहरण नहीं होता है। ऋजुसूत्र और शब्दादि तीन नय पूर्वभाव को ज्ञान करवाते हैं और बाकी के नैगमादि तीन नय पूर्वभाव तथा वर्तमान भाव-इन दोनों को ज्ञात करवाते हैं।
SR No.022536
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2008
Total Pages116
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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