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________________ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं नमः ॥ * पूर्वधर - परमर्षि-सुप्रसिद्ध श्रीउमास्वातिवाचक - प्रवरेण विरचितम् 5 श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् 5 सप्तमोऽध्यायः 5 मूलसूत्रम् — तस्योपरि श्राचार्य श्रीमद्विजय सुशीलसूरिणा * विरचिता 'सुबोधिका टीका' एवं सरलहिन्दीभाषायां विवेचनामृतम् * व्रत स्वरूपम् हिंसा नृत- स्तेया-ब्रह्म-परिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम् ॥ ७१ ॥ * सुबोधिका टीका * यस्मिन् विषये प्रज्ञानं वर्त्तते तस्य त्यागोऽपि दुष्करः । अप्राप्तस्य त्यागोऽपि असम्भवः अतः यद्ज्ञानं तस्य त्यागो व्रतेति । हिंसाया प्रनृतवचनात्स्तेयादब्रह्मतः परिग्रहाच्च कायवाङ्मनोभिविरतिव्रतम् । विरतिर्नाम ज्ञात्वाभ्युपेत्याकरणम् । प्रकरणं निवृत्तिरुपरमो विरतिरित्यनर्थान्तरम् ।। ७-१ ।। * सूत्रार्थ - हिंसा, अनृतवचन- मिथ्याभाषण, स्तेय- चोरी, प्रब्रह्म - कुशील और परिग्रह से विरति को व्रत कहते हैं ।। ७-१ ।। विवेचनामृत छठे अध्याय के तेरहवं सूत्र में व्रती अनुकम्पा और दान ये दो गुण, सातावेदनीय कर्मबन्ध के प्रास्रव बताये गये हैं । व्रत से व्रती शब्द बना है । अर्थात् व्रत और व्रती का ज्ञान कराना
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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