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________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ हिन्दी पद्यानुवाद है गोत्रकर्म सातवां, ऊँच नीच दो भेद से । अन्तरायकर्म आठवां, दान लाभ और भोग से । उपभोग वीर्य ये पांच भाव, अवरुद्ध होते कर्म से । अन्तराय कर्म जान कल्मष, त्याग दो निज ज्ञान से ।। १३ ॥ स्थितिबन्ध* -- . 卐 मूलसूत्रम् प्रादितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोटयः परास्थितिः॥८-१५॥ सप्ततिर्मोहनीयस्य ॥ ८-१६ ॥ नाम-गोत्रयोविंशतिः ॥८-१७ ॥ त्रयस्त्रिशत्सागरोपमाण्यायुष्कस्य ॥ ८-१८ ॥ अपरा द्वादश मुहूर्ता वेदनीयस्य ॥८-१९ ॥ नाम-गोत्रयोरष्टौ ॥८-२० ॥ शेषाणामन्तर्मुहूर्तम् ॥ ८-२१॥ विपाकोऽनुभावः ॥८-२२॥ स यथानाम ॥८-२३॥ ततश्च निर्जरा ॥८-२४ ॥ नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात् सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाहस्थिताः सर्वात्मप्रदेशेषु अनन्तानन्तप्रदेशाः ॥८-२५ ॥ सद्वेद्य-सम्यक्त्व-हास्य-रति-पुरुषवेद-शुभायुर्नाम-गोत्राणि पुण्यम् ॥ ८-२६ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद पहले तीन-अन्तिम चार की, उत्कृष्ट कर्म स्थिति । त्रिंश कोटाकोटी सागर, नाम-गोत्र की विंशति ॥ सित्तर कोटाकोटी सागर, मोहकी स्वस्थिति कही । तैंतीस सागरोपम प्रायु, स्थिति सूत्रे सद्दही ॥ १४ ॥
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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