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________________ श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ८।२३ कर्मविपाकं भुजानो जीवो मूलप्रकृतेरभिन्नोत्तरप्रकृतिविषये कर्मनिमित्तकानाभोगवोर्य पूर्वककर्मणः सङ्क्रमणं करोति । बन्धस्य तथा विपाकस्य निमित्ततोऽन्यजातिभवनेन मूलप्रकृतिविषये सङ्क्रमणं न भवति । उत्तरप्रकृतिविषयेऽपि दर्शनमोहनीयकर्मणश्चारित्रमोहनीयकर्मणः सम्यक्त्वमोहनीयकर्मणो मिथ्यात्व मोहनीयकर्मणरायुष्यकर्मणो नामकर्मणश्च जात्यन्तरानुबन्धेन विपाकेन निमित्तेन चान्यजातिभवनात् सङ्क्रमणं न भवति । अपवर्तनन्तु निखिलप्रकृतीनां भवति ।। ८-२२ ।। * सूत्रार्थ-विपाक अर्थात् फल देने की शक्ति को ही 'अनुभाव' कहते हैं ।। ८-२२ ।। ॐ विवेचनामृत कर्म का विपाक (-फल देने की जो शक्ति) वह अनुभाव (- रस) है। परिपाक, विपाक, अनुभाव, रस तथा फल ये सभी शब्द एकार्थक हैं । कर्मबन्ध के समय में कौनसा कर्म तीव्र, मध्यम वा जघन्य इत्यादि कैसा फल देगा इसका . कर्माणुओं में रहे हुए रस के आधार पर जो निर्णय वह रसबन्ध है ।। ८-२२ ।। कर्म में फल देने की जो शक्ति, वह रसबन्ध है। किस कर्म में किस प्रकार की फल देने की शक्ति है, सो कहते हैंॐ मूलसूत्रम् स यथानाम ॥ ८-२३ ॥ * सुबोधिका टीका * सोऽनुभावो गतिनामादीनां यथानाम विपच्यते ।। ८-२३ ।। * सूत्रार्थ-अनुभाव उन-उन प्रकृतियों के नाम के अनुसार ही हुआ करता है ।। ८-२३ ॥ ॐ विवेचनामृत ॥ वह (अनुभाग बन्ध) कर्मपकृतियों के स्वभावानुसार वेदा जाता है। समस्त कर्मों का विपाक-फल अपने-अपने नाम प्रमाणे है।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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