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________________ ( ε ) [३] तीसरे अध्याय में - १८ सूत्र हैं । इसमें सात पृथ्वियों, नरक के जीवों की वेदना तथा आयुष्य, मनुष्य क्षेत्र का वर्णन, तियंच जीवों के भेद तथा स्थिति प्रादि का निरूपण किया गया है । इसमें देवलोक, देवों की ऋद्धि श्रौर [४] चौथे श्रध्याय में - ५३ सूत्र हैं । उनके जघन्योत्कृष्ट श्रायुष्य इत्यादि का वर्णन है । [५] पांचवें अध्याय में -४४ सूत्र हैं । इसमें धर्मास्तिकायादि अजीव तत्त्व का निरूपण है तथा षट् द्रव्य का भी वर्णन है । पदार्थों के विषय में जैनदर्शन भौर जैनेतर दर्शनों की मान्यता भिन्न स्वरूप वाली है । नैयायिक १६ पदार्थ मानते हैं, वैशेषिक ६-७ पदार्थ मानते हैं, बौद्ध चार पदार्थ मानते हैं, मीमांसक ५ पदार्थ मानते हैं, तथा वेदान्ती एक प्रद्वतवादी हैं । जैनदर्शन ने छह पदार्थ अर्थात् छह द्रव्य माने हैं । उनमें एक जीव द्रव्य है और शेष पाँच प्रजीव द्रव्य हैं । इन सभी का वर्णन इस पाँचवें अध्याय में है । [६] छठे अध्याय में - २६ सूत्र हैं । इसमें श्रास्रव तत्त्व के कारणों का स्पष्टीकरण किया गया है । इसकी उत्पत्ति योगों की प्रवृत्ति से होती है । योग पुण्य और पाप के बन्धक होते हैं । इसलिए पुण्य और पाप को पृथक् न कहकर भाव में ही पुण्य-पाप का समावेश किया गया है । [७] सातवें अध्याय में - ३४ सूत्र हैं । इसमें देशविरति और सर्वविरति के व्रतों का तथा उनमें लगने वाले प्रतिचारों का वर्णन किया गया है । [८] आठवें अध्याय में - २६ सूत्र हैं । इसमें मिथ्यात्वादि हेतु से होते हुए बन्ध तत्त्व का निरूपण है । [2] नौवें अध्याय में - ४६ सूत्र हैं । निरूपण किया गया है । [१०] दसवें अध्याय में - ७ सूत्र हैं । इसमें संवर तत्त्व तथा निर्जरा तत्त्व का इसमें मोक्षतत्त्व का वर्णन है ।
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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