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________________ 'तत्त्वार्थाधिगम सूत्र' नामक ग्रन्थ रचा । नाम उमा था । ( ६ ) आपके पिता का नाम स्वाति और माता का श्री उमास्वाति महाराज कृत 'जम्बूद्वीपसमासप्रकरण' के वृत्तिकार श्री विजयसिंह सूरीश्वर जी म. ने अपनी वृत्ति टीका के प्रादि में कहा है कि उमा माता और स्वाति पिता के सम्बन्ध से उनका नाम 'उमास्वाति' रखा गया । यानी वाचक श्री पन्नवणा सूत्र की वृत्ति में कहा है कि 'वाचकाः पूर्वविदः ।' का अर्थ पूर्वघर है । इस विषय में 'जैन परम्परा का इतिहास' भाग १ में भी कहा है कि "श्री कल्पसूत्र " के उल्लेख से जान सकते हैं कि प्रार्य दिन्नसूरि के मुख्य शिष्य श्रार्यशान्ति श्रेणिक से उच्चनागर शाखा निकली है । इस उच्चनागर शाखा में पूर्वज्ञान के धारक और विख्यात ऐसे वाचनाचार्य शिवश्री हुए थे । उनके घोषनन्दी श्रमण नाम के पट्टधर थे, जो पूर्वधर नहीं थे, किन्तु ग्यारह अंग के जानकार थे । पण्डित उमास्वाति ने घोषनन्दी के पास में दीक्षा लेकर ग्यारह अंग का अध्ययन किया । उनकी बुद्धि तेज थी। वे पूर्व का ज्ञान पढ़ सकें ऐसी योग्यता वाले थे । इसलिए उन्होंने गुरुप्राज्ञा से वाचनाचार्य श्रीमूल, जो महावाचनाचार्य श्रीमुण्डपाद क्षमाश्रमरण के पट्टधर थे, उनके पास जाकर पूर्व का ज्ञान प्राप्त किया । श्री तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के भाष्य में 'उमास्वाति महाराज उच्चनागरी शाखा के थे', ऐसा उल्लेख है । उच्च नागरी शाखा श्रमण भगवान श्री महावीर परमात्मा के पाठे प्राये हुए प्रार्यदिन के शिष्य श्रार्य शान्ति श्रेणिक के समय में निकली है । अतः ऐसा लगता है कि वाचकप्रवर श्री उमास्वाति जी महाराज विक्रम की पहली से चौथी शताब्दी पर्यन्त में हुए हैं । इस अनुमान के अतिरिक्त उनका निश्चित समय अद्यावधि उपलब्ध नहीं है । श्रीतत्त्वार्थसूत्र की भाष्यप्रशस्ति में श्रागत उच्चनागरी शाखा के उल्लेख से श्रीउमास्वातिजी की गुरुपरम्परा श्वेताम्बराचार्य श्रार्यश्री सुहस्तिसूरीश्वरजी महाराज की परम्परा में सिद्ध होती है । प्रभावक आचार्यों की परम्परा में वाचकप्रवर श्री उमास्वाति महाराज एक ऐसी विशिष्ट श्रेणी के महापुरुष थे, जिनको श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों समान भाव से सम्मान देते हैं और अपनी-अपनी परम्परा में
SR No.022535
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year2001
Total Pages268
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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