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४. ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ श२४ (६) एक शब्द अन्य शब्द का अभिभव कर सकता है। अर्थात्-बड़े मोटे शब्द से छोटे लघु
शब्द का अभिभव हो जाता है। इसलिए ही तो दूर से बड़े शब्द को आवाज कान से टकराती हो तो समीप-नजदीक के भी शब्द सुनने में नहीं पाते हैं। प्रथम सौधर्म देवलोक में सौधर्मसभा में रही हुई सुघोषा घंटा बजने से उसी प्रकार की विशिष्ट रचना से समस्त विमानों में रही घंटाएं बजने लगती हैं। यदि शब्द को पुद्गल न मानें तो ऐसा नहीं हो सकता। इस प्रकार अनेक रीतियों से युक्तिपूर्वक 'शब्द पुद्गल ही है' यही सिद्ध होता है।
शब्द की उत्पत्ति विनसा से और प्रयोग से इस प्रकार दो प्रकार से होती है। बादल और बिजली आदि की आवाज किसी भी प्रकार के जीवप्रयोग के बिना स्वाभाविक रूप से (f उत्पन्न होती है।
* प्रयोगज शब्द के छह भेद * (१) तत-हाथ के प्रतिघात से उत्पन्न हुए ढोल आदि के शब्द। (मुरज, मृदंग, पटह आदि)।
(२) वितत-वीणादि तांत-तारवाले वाजिन्त्रों से। अर्थात्-तार की सहायता से उत्पन्न होते हुए वीणा आदि के शब्द ।
(३) घन-कांसी, झालर, घंट-घंटड़ी आदि वाजिन्त्रों के परस्पर टकराने से उत्पन्न शब्द । . (४) शुषिर-पवन-वायु पूरने से बाँसुरी, पावा और शंखादि द्वारा उत्पन्न होते हुए शब्द ।
(५) संघर्ष-काष्ठ आदि के परस्पर संघर्षण से उत्पन्न ध्वनि । अर्थात्-रगड़ने से उत्पन्न होने वाले शब्द ।
(६) भाषा-यानी जीव के मुख के प्रयत्न द्वारा उत्पन्न होने वाले शब्द ।
भाषा दो प्रकार की होती है। व्यक्त और अव्यक्त। उसमें बेइन्द्रियादि जीवों की भाषा अव्यक्त (अस्पष्ट) होती है तथा मनुष्य आदि की भाषा व्यक्त (स्पष्ट) होती है ।
वर्ण, पद तथा वाक्य स्वरूप भाषा व्यक्त भाषा है। अ, प्रा इत्यादि । चौदह स्वर तथा क, ख, इत्यादि तेंतीस व्यंजन एवं अनुस्वार-विसर्गादि सभी वर्ण हैं। विभक्ति युक्त वर्णों का समुदाय पद है तथा पदों का समुदाय वाक्य है । * प्रश्न-शब्द का ज्ञान श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा होता है। श्रोत्रेन्द्रिय रहित प्राणी शब्द का
श्रवण नहीं कर सकते हैं, अर्थात् वे सुन नहीं सकते हैं। ऐसा होने पर भी खेत में उगी हुई हरियाली वनस्पति इत्यादि पर बैठे हुए जीव-जन्तु ढोल प्रादि की आवाज से उड़ जाते हैं, उसका क्या कारण है ?