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________________ ३४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ५२२२ तदेवं प्रशंसाक्षेत्रकृते परत्वापरत्वे वर्जयित्वा वर्तनादीनि कालकृतानि कालस्योपकारः । वर्तन्ते पदार्थाः तेषां वर्तयिता कालः । स्वयमेव वर्तमाना: पदार्थाः वर्त्तन्ते यया सा कालाश्रया प्रयोजिका वृत्तिः वर्तना। वृतुधातोः “ण्याश्रयोयुच् सूत्रेण युच । अथवा वृत्तिवर्तनशीलता अनुदात्तेतश्च हलादेः" सूत्रेण युच् । अर्थात् प्रतिद्रव्यपर्यायमन्तीक समयस्वसत्तानुभूतिः वर्तनेति। वर्तनादिका कालोपकाराः, असाधारणलक्षणम् । यत् कालो न स्यात् वर्तना द्रव्याणामपि असम्भवा। नैव च तेषां परिणमनमपि, न च गतिः, न च परत्वापरत्वव्यवहारोऽपि । प्रोदनाय तण्डुलाः स्थाल्यां निक्षिप्ताः, स्थाल्यामुदकमपि अस्ति, अग्निना पच्यतेऽपि सर्वैः कारणः प्रस्तुतैरपि प्रोदनपाकं प्रथमक्षणे एव नैव सिद्धयति, योग्यसमयापेक्षा तत्र अपेक्षते, तथापि प्रथमक्षणे तस्य पाकस्य किञ्चिदंशं न सिद्ध तहि द्वितीय क्षणेऽपि प्रसिद्धमेव भवति। अतः पाकस्य वर्तना प्रथमक्षणेनैव जायते। अतः वर्तना प्रथमसमयाश्रया भवति । इत्थं प्रतिक्षणवर्तना विषयेऽपि ज्ञातव्यम् । केचिदत्र पुद्गलशब्देन जीवेति गृह्णन्ति सर्वशून्यवादिनः नास्तिका वा बार्हस्पत्याः ।। ५-२२ ।। * सूत्रार्थ-वर्तना, परिणाम, क्रिया और परत्वापरत्व (पहला-पिछला) यह काल का उपकार है ।। ५-२२॥ _ विवेचनामृत ॥ यद्यपि श्रीतत्त्वार्थकार के मत में कालद्रव्य नहीं है तो भी अन्य के मत में कालद्रव्य है। इस तरह आगे कहने वाले हैं। नयचक्रादि अन्य ग्रन्थों में काल को उपचार मात्र से द्रव्य माना है, वास्तव में यह पंचास्तिकाय के अन्तर्भूत पर्यायरूप है। यथा ___ "पंचास्तिकायान्तर्भूतपर्यायरूप नैवास्य। तत्र काल उपचारतव द्रव्यं न तु वस्तुवत्या ॥" तथापि यहाँ काल को स्वतन्त्र द्रव्य मानकर उसका उपकार बताते हैं। यहाँ उपकार के प्रकरण में काल के वर्तनादि उपकार कहने में आया है। जैसे अपने-अपने पर्याय की उत्पत्ति में स्वयमेव प्रवर्त्तमान द्रव्यों के लिए धर्मादि द्रव्य उदासीन कारण हैं, उसी प्रकार काल द्रव्य भी उदासीन प्रयोजक है। __ इस सूत्र में वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये काल का उपकार हैं, ऐसा कहा है। (१) वर्तना-प्रतिसमय उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यरूप स्वसत्ता से युक्त द्रव्य का वर्तना यानी होना वह वर्तना है। जो द्रव्य स्वयं वर्त्त रहे हैं, उनमें काल निमित्त बनता है।
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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