SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५।१८ ] पञ्चमोऽध्यायः [ २५ उत्तर- जो प्रकाश ही गति स्थिति में कारण हो तो अलोकाकाश में गति स्थिति क्यों नहीं होती ? अलोकाकाश भी प्रकाश ही है । अलोकाकाश में जीव, पुद्गल की गति स्थिति नहीं होने से आकाश बिना अन्य कोई ऐसा द्रव्य होना चाहिए जो जीव- पुद्गल की गति स्थिति में कारण हो । तथा जो गति में कारण हो वह गति में कारण हो, वह स्थिति में कारण न हो सके। जो स्थिति में कारण हो वह गति में कारण नहीं हो सके । कारण रूप में दो द्रव्य अवश्य होने ही चाहिये। धर्मास्तिकाय | अतः गति और स्थिति के भिन्न-भिन्न वे दो द्रव्य हैं - धर्मास्तिकाय और "गतिरूपे परिणत जीव - पुद्गलों की गति में सहायक बनना" यह धर्मास्तिकाय का लक्षण है तथा "स्थितिरूपे परिणत जीब- पुद्गलों की स्थिति में सहायक बनना " यह अधर्मास्तिकाय का लक्षण है । [ लक्षण यानी वस्तु को प्रोलखाण कराने वाला असाधारण ( अन्य वस्तु में न रहे वैसा ) धर्म ] ।। ५- १७ ।। 5 मूलसूत्रम् - श्राकाशस्यावगाहः ॥ ५- १८ ॥ * सुबोधिका टीका * धर्माधर्मद्रव्ये कृत्स्ने लोके नित्यव्याप्ते तयोः प्रदेशानां लोकाकाशस्य प्रदेशैः विभागमशक्यम् । श्रतः प्रवगाहिनां धर्माधर्मपुद्गलजीवानामवगाहः श्राकाशस्योपकारः धर्माधर्मयोरन्तः प्रवेशसम्भवेन पुद्गल - जीवानां संयोग-विभागैश्चेति । बहवस्तु " शब्दगुणकमाकाशम्" इति मन्यन्ते । किन्तु मिथ्यैतद्, यत्शब्दस्तु पुद्गलस्य पर्याय:, स्वभावेन सिद्धम् । यदि शब्दः श्राकाशस्य गुणं भवेत्, तर्हि इन्द्रियैः नोपलब्धं भवेत् न मूर्त्तपदार्थेन रोद्धम् शक्यं भवेत् । श्रत श्राकाशमपि पुद्गलस्य पर्यायम् । अत्रावगाह द्विष्ठधर्मेति शंकापि प्रयोग्या यत् प्रधानता प्राधेयस्य नैव श्राधारस्यैव वर्त्तते ।। ५- १८ ॥ * सूत्रार्थ - श्रवगाही द्रव्यों को अवगाह देना आकाश का उपकार है ।। ५-१८ ।। विवेचनामृत 5 अवगाह के लिए निमित्त होना आकाशद्रव्य का कार्य है । धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीव और पुद्गल इन चार द्रव्यों को प्राकाश अवगाह ( जगह ) देता है । आकाश का यह आर्य लक्षण रूप है । " धर्मास्तिकायादि द्रव्यों को अवगाह ( जगह ) प्रदान करना" यही प्रकाश का लक्षण है । अवगाह करने वाले धर्म, अधर्म, पुद्गल और जीव द्रव्य हैं । इनको अवगाह देना आकाश का उपकार है । इनमें से धर्म और अधर्म के अवगाह में उपकार अन्तः अवकाश द्वारा किया जाता है ।
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy