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________________ श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ५६ धर्मास्तिका आदि के स्कन्ध आदि भेद बुद्धि की कल्पना से भिन्न-भिन्न अपेक्षा से एक ही द्रव्य के हैं । उन भेदों को मूलद्रव्य से कभी पृथक् - भिन्न नहीं कर सकते हैं । जीव द्रव्य अनेक व्यक्तिरूप अनन्त हैं उसी प्रमाण पुद्गल द्रव्य भी अनन्त हैं । ८ विशेष - इन तीनद्रव्यों में एक द्रव्यत्व का साधर्म्य है । संख्या की बाबत इनका जीव और पुद्गलों के साथ वैधर्म्य है । जीव और पुद्गल में अनेक द्रव्यत्व का साधर्म्य है । धर्म, अधर्म और आकाश के साथ अनेकत्व का वैधर्म्य है ।। ५-५ ।। * श्राकाशादिद्रव्येषु निष्क्रियता 5 मूलसूत्रम् निष्क्रियाणि च ॥ ५-६ ॥ * सुबोधिका टीका * श्रा आकाशादेव धर्मादीनि निष्क्रियाणि भवन्ति । क्रियाशीलाः क्रियेति गतिकर्माह । पुद्गल - जीवास्तु क्रियापि द्विविधा | परिणामलक्षणा परिस्पन्दलक्षणेति । अस्ति भवति क्रिये वस्तुनः परिणमनमात्रं दर्शयतः । क्षेत्रात् क्षेत्रपर्यन्तवस्तुनयनमाकारान्तरकरणं वा परिस्पन्दलक्षरणा । जीवपुद्गलाः क्रियावन्ताः गतिमन्ताश्च । एषामाकाररूपाणां परिणमनं भवत्येव । धर्मादिकानामाकाराणि श्रनादिकालतः अनन्तकाल पर्यन्तं समानानि । अर्थात् जीवपुद्गलवत् धर्माधर्माकाशद्रव्याणि न तु श्राकारान्तरयुक्तानि न च क्षेत्रान्तरगमनयोग्यानि भवन्ति । अन्यच्च प्रदेशावयवबहुत्वं कायसंज्ञमिति शङ्कयते । प्रदेशावयवनियमावधारणा । क एषः धर्मादीनां श्रत्रोच्यते - सर्वेषां प्रदेशाः भवन्ति श्रन्यत्र परमाणोः । अवयवास्तु स्कन्धानामेव । यत् “अरणवः स्कन्धाश्च । सङ्घातभेदेभ्यः उद्भवन्ति " ।। ५-६ ।। * सूत्रार्थ - उक्त तीनों ही द्रव्य निष्क्रिय हैं । अर्थात् " धर्माधर्माकाश" तीनों द्रव्य निष्क्रिय हैं । किन्तु पुद्गल और जीव ये दोनों क्रियावान हैं ।। ५-६ ।। विवेचनामृत 5 आकाशादि द्रव्यों में निष्क्रियता अर्थात् ये द्रव्य निष्क्रिय क्रियारहित हैं । यहाँ पर सामान्यक्रिया का निषेध नहीं है, किन्तु गतिरूप विशेषक्रिया का निषेध है ।
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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