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________________ ४ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ५२ जो तत्त्वरूप मानने वाले हैं, वे भी केवल प्रदेशात्मक मानते हैं, किन्तु प्रदेश प्रचय- समूहरूप नहीं मानते। इसलिए काल की गणना अस्तिकायों के साथ नहीं हो सकती है । तथा जो काल को स्वतन्त्र तत्त्व नहीं मानने वाले हैं, उनके मतानुसार काल तत्त्वरूप भेदों में हो ही नहीं सकता । * प्रश्न – क्या उपर्युक्त धर्मास्तिकायादि चारों तत्त्व अन्य दर्शनों को मान्य हैं ? उत्तर - नहीं, केवल प्रकाश और पुद्गल इन दो तत्त्वों को न्याय, वैशेषिक तथा साङ्ख्यादिक अन्य दर्शन मानते हैं । किन्तु धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय, इन दो तत्त्वों को श्री जैनदर्शन के अलावा अन्य कोई भी दर्शन वाले नहीं मानते । जैनदर्शन जिसको आकाशास्तिकाय कहता है, उसको दूसरे दर्शन वाले आकाश कहते हैं । तथा पुद्गलास्तिकाय यह संज्ञा भी केवल जैनशास्त्रों में ही है । अन्य दर्शन तत्त्वस्थान में इसका प्रकृति या परमाणु शब्द से उपयोग करते हैं ।। ( ५-१ ) 5 मूलसूत्रम् * मूलद्रव्यकथनम् धर्मास्तिकायादितत्त्वानां विशेषसंज्ञा द्रव्यारिण जीवाश्च ॥ ५-२ ॥ * सुबोधिका टीका * वैशेषिकास्तु द्रव्यशब्देन द्रव्यत्वं जातित्वं गृह पन्ति । जातीति सामान्यं पदार्थं अतः द्रव्यत्वमपि सामान्यपदार्थम् । एते धर्मादयश्चत्वारो जीवाश्च पञ्चद्रव्याणि च भवन्ति । मति श्रुतयोनिबन्धो द्रव्येष्वसर्व पर्यायेषु सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवल स्येति ।। ५-२ ।। * सूत्रार्थ - उपर्युक्त धर्मास्तिकायादि चार और जीव इन पाँचों की द्रव्य संज्ञा है ।। ५-२ ।। 5 विवेचनामृत 5 श्रीजैन दर्शन - जैनदृष्टि के अनुसार विश्व जगत् केवल पर्याय अर्थात् परिवर्तन रूप ही नहीं है, किन्तु परिवर्तनशील होते हुए भी अनादिनिधन है । श्रीजैन मतानुसार विश्व जगत् में मुख्य पाँच द्रव्य हैं तथा उन्हीं के नाम इन दो सूत्रों में बताये हैं |
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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