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________________ HTRIANRAINRITERMIRMIRINTAMILINE • में "अलंकरण भार रूप हैं। मैं तो प्रभु के चरण-कमलों में समर्पित एक नन्हा पुष्प पल्लव हूँ।" प्रापश्री के पट्टधर पूज्य प्राचार्य श्री जिनोत्तम सूरीश्वरजी म. भी सुमधुर प्रवचनकार एवम् प्रभावशाली सन्त हैं। आपको प्रेरणा से सुशील-सन्देश मासिक पत्र का सुन्दर रूप से प्रकाशन हो रहा है। सर्वजनसुखाय की सत्प्रेरणा से प्रकाशित मासिक जन-जन के लिए अभिप्रेरक है। सुशील वचनामृत १. अनन्त शान्ति की प्राप्ति हेतु दूसरों का हित करो। २. सादा जीवन और उच्च विचार मानव का सिद्धान्त होना चाहिए। इससे सफलता मिलती है । ३. पृथ्वी के तीन रत्न हैं-जल, अन्न और मधुर वाणी । ४. दयापूर्ण हृदय मनुष्य की अनन्त मूल्यवान सम्पत्ति है । ५. धर्म का अर्थ है प्रेम । ६. परोपकार करना प्रभु की सर्वोत्तम सेवा है । ७. चरित्रवान् व्यक्ति कुबेर के अनन्त कोषों से भी अधिक मूल्यवान है। भारतीय संस्कृति में निहित अहिंसा, प्रेम प्रादि सिद्धान्तों व जैन दर्शन की सहिष्णुता व क्षमाशीलता का अमृत पिलाने वाली लोकमंगल-विभूति को अनन्त प्रणाम । 卐 AMMMMMARRRRRRRRRRRRIER M
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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