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________________ 编 सद्गुरुभ्यो नमो नमः ॐ सदा स्मरणीय वन्दनीय - सुसंयमी - पूज्यपाद * श्री वृद्धिविजय गुरु स्तुत्यष्टक * wwww:W ( हरिगीत - छन्द ) पंजाब - लाहोर इसी देश भारते जिल्लामहीं, विख्यात रामनगर नामक शहर शुभ सोहे सही । कृष्णादेवी-धरमजस के शुभ पुत्र कृपाराम ए, वन्दु उन्हें गुरु वृद्धिविजय वृद्धिचन्द्र को भाव से ।। १ ।। जिसने भ्रष्टादश वर्षे छोड़ा प्रसार संसार को, निज सम्पत्ति त्यागी सभी, किया ग्रहण चारित्र को । त्यजा स्थानक बने संवेगी हुए शिष्य बुद्धि गुरु के वन्दु उन्हें गुरुवृद्धिविजय वृद्धिचन्द्र को भाव से ।। २ ।। " 11 3 11 शान्त दान्त त्यागी तथा ज्ञानी ध्यानी सन्त ए, वात्सल्य मूर्ति परोपकारी, सद्धर्म श्रद्धावन्त ए । सुसंयमी बालब्रह्मचारी, सद्गुणानुरागी ए, वन्दु उन्हें गुरु वृद्धिविजय - वृद्धिचन्द्र को भाव छोटे-बड़े सबही जन को मान देते प्रेम से, तथा मीठी वाणी से ही सब जन चित्ताकर्षते । जास चित्ते अचल निर्मल समदृष्टि सदा विभासे, वन्दु उन्हें गुरु वृद्धि विजय - वृद्धिचन्द्र को भाव से ।। ४ ।। निज शिष्यादि को विनयपद वृद्धिकृते सुबोध देते, तथा विद्याव्यसनकृतेऽपि शिष्य शिरे हस्त रखते । जास सब उत्कति सदा शास्त्रे शिष्य वृन्दे गवाशे, वन्दु ं उन्हें गुरु वृद्धिविजय - वृद्धिचन्द्र को भाव से ।। ५ ।।
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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