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________________ श्री अष्टापद जैन तीर्थ के संस्थापक परमपूज्य श्री सुशील गुरुदेवश्री की जीवन-झलक जन्म- वि. स. १६७३, भाद्रपद शुक्ला द्वादशी, चाणम्मा ( उत्तर गुजरात) २९-६-१७ दीक्षा-वि.स. १६कार्तिक (मृगशीर्ष) कृष्णा २, उदयपुर (राज. मेवाड़) २७-११-३१ गणि पदवी-वि. सं. २००७, कार्तिक (मृगशीर्ष) कृष्णा ६, वेरावल (गुजरात) १-१२-५० पंन्यास पदवी- वि.सं. २००७, वैशाख शुक्ला ३ (अक्षय तृतीया) अहमदाबाद (गुजरात) ६-५-५१ उपाध्याय पद- वि. सं. २०२१, माघ शुक्ला ३, मुंडारा (राजस्थान) ४-२-६॥ आचार्य पद - वि.सं. २०२१, माघ शुक्ला रबसन्त पंचमी) मुंडारा ६-२-६५ पुज्यपाद श्री प.पु. सरिचक्रचक्रवर्ती आचार्यदेव श्रीमद विजय नेमिसूरीश्वरजी म.सा. के पट्टालंकार साहित्य-सम्राट आचार्यप्रवर श्रीमद् विजय लावण्यसुरीश्वरजी म.सा. के पट्टविभूषण कवि-दिवाकर आचार्यवयं श्रीमद विजय दक्षसरीश्वरजी म.सा. के पट्टधर हैं जो परम तपस्वी, महाकवि तथा लोकनायक हैं और जगत्-कल्याण के लिए सतत जागरूक हैं। आप भगवान महावीर के अहिंसामृत को पिलाने हेतु ६० वर्षों से घर-घर, नगर-नगर और ग्राम-ग्राम पैदल विहार कर रहे हैं। आपकी सौम्यता की उपमा अमृत निर्झर से दी जाती है। शीतलता के तो मानों आप डिमसरोवर हैं और विराटता की तुलना हिमगिरि से करना उपयुक्त होगा। आपने राजस्थान की मरुभूमि को ज्ञान-गगा से प्रवाहित करने हेतु इसे ही अपनी कर्मभूमि बनाया है। आपने लगभग १२७ से भी अधिक पुस्तकों की रचना की है। साहित्य-सृजन का आपका उद्देश्य है मानवीय मूल्यों-प्रेम, सेवा, करुणा, प्रभूभक्ति और परमार्थ भावों को जागत करना। आपकी लघुता में विनय की पराकाष्ठा झलकती है। ज्ञान-गरिमा यधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् यधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् याधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् याधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् याधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् 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SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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