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________________ ५६ ] 5 मूलसूत्रम् श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे * पहली चार कर्मप्रकृतियों के श्रात्रव * हिन्दी पद्यानुवाद तत्प्रदोष-निह्नव मात्सर्यान्तराया - सादनोपघाता ज्ञान- दर्शनावरणयोः ॥ ११ ॥ दुःख-शोक- तापाक्रन्दन-वध- परिदेवनान्यात्मपरोभयस्थान्यसद्वेद्यस्य ॥ १२ ॥ भूतव्रत्यनुकम्पादानं सरागसंयमादियोगः क्षान्तिः शौचमिति सद्वेद्यस्य ॥ १३ ॥ केवलि - श्रुत-संघ - धर्म -देवावर्णवादो दर्शनमोहस्य ॥ १४ ॥ कषायोदयात् तीव्रात्मपरिणामश्चारित्रमोहस्य ॥ १५ ॥ प्रदोष निह्नव किये ईर्ष्या, अन्तराय आशातना । उपघात करते कर्म बाँधे, जीव ज्ञानावरणका || दर्शनावरणीय बँधे, पूर्व कारण जानना । कर्म तीसरा क्यों बँधे, सुनो भविजन एकमना ।। ८ ।। कृत और कारित दुःख, शोक संताप प्राक्रंदन तथा । वध एवं परिदेवनादि, स्वयं और अन्य तथा ।। कर्म अशातावेदनीय को, बाँधते हैं जीव बहु । उससे विपरीत रीत को, अन्य कारण हैं बहु ॥। ९ ॥ [ हिन्दी पद्यानुवाद दिल में दया जीव को व्रती की, दान धर्मे स्थिरता । सराग संयम योग आदि, कर्म शाता वेदनीय को, मोहनीयद्वय किम बँधे, क्षमा शुचिता धारता ।। बाँधते इम भविजना । सुनो कारण कर्म का ।। १० ।। केवली श्रुत संघ धर्म, देव की निंदा करते । दर्शनमोहनीय बँधे, भवविटम्बन विस्तरे || कषाय उदये तीव्र भावे, चारित्रमोहज बाँधता । सर्वशिरोमणि मोह बढ़ता, भव परम्परा साधता ।। ११ ॥
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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