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________________ ३२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ६।१३ (६) अकामनिर्जरा-काम यानी इच्छा। निर्जरा यानी कर्म का क्षय। स्वेच्छा से कर्मों का विनाश वह सकामनिर्जरा है तथा इच्छा बिना कर्मों का विनाश वह अकामनिर्जरा है। इच्छा नहीं होते हुए परतन्त्रता, अनुरोध, साधना का अभाव, व्याधि-रोगादिक के कारण पाप की प्रवृत्ति नहीं करें, विषयसुख का सेवन नहीं करें तथा आये हुए कष्ट-संकट शान्ति से सहन करें, इत्यादिक कारणों से अकाम-निर्जरा होती है। परतन्त्रता से भी अकाम-निर्जरा होती है । -जेल में गये हए मनुष्य तथा नौकर प्रमख, परतन्त्रता के कारण इष्ट-वियोग का और अनिष्ट संयोग का दुःख सहन करें। आहार एवं उत्तम वस्त्रादिक के भोग-उपभोग नहीं करें, आई हुई परिस्थिति को शान्ति से सहन करें। उक्त सभी को सहन करने से अकाम-निर्जरा होती है। तदुपरान्त * अनुरोध-(दाक्षिण्य अथवा प्रीति) से अकाम निर्जरा होती है। जैसे - स्वजन या मित्रादिक जब आपत्ति में आ जायें तब दाक्षिण्य अथवा प्रीति से उनकी सहायता करने के लिए कष्ट सहन करना। व्यवहार की खातिर मिष्टान्न आदि का त्याग करना आदि । * साधन के प्रभाव से अकामनिर्जरा होती है। जैसे-भिखारी, निर्धन-गरीब मनुष्यों तथा तिर्यंच प्राणियों आदि के शीत-ताप इत्यादि कष्ट से अकामनिर्जरा होती है । * रोग के कारण मिष्टान्न आदि का त्याग करें, वैद्य-डॉक्टर आदि की परतन्त्रता सहन करें तथा ताप इत्यादि के दुःख को सहन करें। सहन करने के इरादे बिना भी सहन करे। इत्यादि अनेक कारणों से 'प्रकामनिर्जरा होती है। (७) बालतप-विना ज्ञान के अग्निप्रवेश, जलपतन तथा अनशनादिक तप को बालतप कहते हैं। अर्थात् अज्ञानता से (विवेक बिना) अग्निप्रवेश, पंचाग्नि तप तथा भृगुपात प्रमुख तप बालतप है। (८) क्षमा (क्षान्ति)-धर्मदृष्टि से क्रोधादिक दोषों का दमन करना क्षमा (क्षान्ति) कही जाती है। अर्थात्-क्रोध कषाय के उदय को रोकना, या उदय में आये हुए कषाय को निष्फल बनाना, यह क्षमा-शान्ति है। (६) शौच-लोभ कषाय का त्याग करना। अर्थात् संतोष रखना। पूर्वोक्त कारणों से सातावेदनीय कर्म का बन्ध होता है। ये सभी सातावेदनीय कर्म के आस्रव हैं। * तदुपरान्त विशेष-धर्म का अनुराग, तप का सेवन, बाल-ग्लान-तपस्वी आदि की वैयावच्च, देव-गुरु भक्ति, तथा माता-पिता की सेवा इत्यादि के शुभपरिणाम भी सातावेदनीयकर्म के प्रास्रव हैं। इन प्रास्रवों से भवान्तर में तथा इस भव में भी सुख मिले, ऐसे शुभ कर्मों का बन्ध होता है ।। ६-१३ ॥
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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