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________________ १८] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ६।७ (४) चतुर्थं अर्धनाराच संघयण वाले जीव-प्रात्मा ऊपर आठवें सहस्रार देवलोक तक तथा नीचे चौथी पंकप्रभा नरक भूमि तक जा सकते हैं । :' : (५) पंचम कीलिका संघयरण वाले जीव आत्मा ऊपर छठे लांतक देवलोक तक तथा तीसरी वालुकाप्रभा नरक भूमि तक जा सकते हैं । (६) छठे सेवार्त संघयरण वाले जीव - प्रात्मा ऊपर में चौथे माहेन्द्र देवलोक तक तथा नीचे दूसरी शर्कराप्रभा नरक भूमि तक जा सकते हैं । विशेष - भरत क्षेत्र में वर्त्तमान काल में छठा ही सेवार्त संघयण होने से जीव आत्मा ऊपर चौथे माहेन्द्र देवलोक तक तथा नीचे दूसरी शर्कराप्रभा नरक भूमि तक ही जा सकते हैं । * श्रधिकरण - प्रधिकरण यानी प्रस्रव क्रिया के साधन । अधिकरण के भेद से भी कर्मबंध में भेद पड़ते हैं । जैसे - एक व्यक्ति के पास तलवार तीक्ष्ण है, तथा दूसरे व्यक्ति के पास तलवार भोथरी, भोटी है । इसलिए तो इन दोनों के हिंसा की क्रिया समान होते हुए भी परिणाम में भेद पड़ता है । * प्रश्न - अधिकरण आदि के भेद से कर्मबन्ध में भेद पड़ता है, ऐसा नियम नहीं है । कितनेक को अधिकरण आदि नहीं होते हुए भी तीव्र कर्मबन्ध होते हैं । जैसे – स्वयंभूरमण समुद्र उत्पन्न होने वाला तंदुलमत्स्य । उसके पास हिंसा के साधन नहीं होते हैं । वासुदेव श्रादि जैसा बल भी नहीं होता है, तो भी वह मृत्यु पा करके सातवीं तमस्तमः प्रभा नरक में चला जाता है ? उत्तर - यहाँ पर किये हुए तीव्रभाव आदि 'छह' में तीव्रभाव तथा मन्दभाव की ही मुख्यता है । ज्ञातभाव आदि चार तीव्रभाव और मन्दभाव में निमित्त होने से कारण की दृष्टि से इन चार ग्रहण किया है। ज्ञातभाव आदि की विशेषता से कर्मबन्ध में विशेषता आती है ऐसा एकान्ते नियम नहीं है । यहाँ पर तो ज्ञातभाव आदि की विशेषता से कर्मबन्ध में विशेषता प्राती है, ऐसा कथन बहुलता की दृष्टि से है । तन्दुलमत्स्य इत्यादि के अपवादभूत उदाहरण- दृष्टान्तों को छोड़कर के मोटे भागे ज्ञातभाव आदि की विशेषता से कर्मबन्ध में विशेषता होती है । अथवा अधिकरण अब आगे के सूत्र में कहा जायेगा। वह दो प्रकार का है । तलवार इत्यादि बाह्य अधिकरण हैं । कषायादिक की तीव्रता तथा मन्दता इत्यादि इस अध्याय के नौवें सूत्र में बतायेंगे । वह प्रमाणे १०८ प्रकार का अभ्यन्तर अधिकरण है । तन्दुलिया मत्स्यादिक तलवारादिक बाह्य अधिकरण का प्रभाव होने पर भी रौद्रध्यान स्वरूप मन तथा कषायादिक अभ्यन्तर अधिकरण अत्यन्त ही भयंकर होने से सातवीं नरक भूमि में जा सकते हैं ।। ६-७ ।।
SR No.022534
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1998
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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