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________________ ४८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ३।१३ तथा प्राहारक-ऋद्धिधारकः, तेषां मुनीनां नैव भवति । प्रागम-सिद्धान्तेषु निर्दिष्टमिदमेव । तदेवमर्वाग् मानुषोत्तरस्यार्धतृतीया द्वीपाः समुद्रद्वयं पञ्चमन्दराः पञ्चत्रिंशत् क्षेत्राणि त्रिंशद् वर्षधरपर्वताः पञ्चदेवकुरवः पञ्चोत्तराः कुरवः शतं षष्टयाधिक चक्रवर्ति विजयानां द्वशते पञ्चपञ्चाशदधिके जनपदानामन्तरद्वीपाः षट्पञ्चाशद् इति । अन्यच्च मानुषोत्तरप्राप्तिपूर्वमेव साधारणमनुष्याणां मरणं भवति ।। ३-१३ ।। * सूत्रार्थ-धातकीखण्ड के समान ही क्षेत्र और पर्वतादिक पुष्करार्धद्वीप में हैं । अर्थात-पुष्कराद्धद्वीप में भी पर्वत और क्षेत्र धातकीखण्ड के समान ही हैं ।। ३-१३ ।। 卐 विवेचनामृतम धातकीखण्ड की तथा पूष्कराद्ध की रचना समान है। धातकीखण्ड के ही तुल्य पूष्करार्ध में भी दो इष्वाकार पर्वत हैं। ये दक्षिण और उत्तरदिशा में लम्बे हैं, कालोदधि तथा पुष्करवर समुद्र के जल का स्पर्श करने वाले हैं एवं पाँच सौ (५००) योजन ऊँचे हैं। पुष्कराध के भी दो भाग हैं। पूर्व पुष्कराध और पश्चिम पुष्करार्ध। धातकीखण्ड के तुल्य इनमें भी रचना है। जम्बूद्वीप की अपेक्षा यहाँ पर भी क्षेत्रों तथा पर्वतों की संख्या दुगुनी होती है। जैसे-जम्बूद्वीप में एक भरतक्षेत्र है, तो पुष्कराध में दो भरतक्षेत्र हैं। उसमें एक पूर्व पुष्करार्ध में है तथा दूसरा पश्चिम पुष्कराध में है। इसी तरह अन्य क्षेत्रों का तथा पर्वतों का प्रमाण भी जानना । धातकीखण्ड के समान यहाँ पर भी दो मेरुपर्वत हैं, जो चौरासी-चौरासी हजार (८४०००) योजन ऊँचे हैं। वंशधर पर्वत भी चार-चारसौ (४००) योजन ऊँचे हैं। यहाँ सब धातकीखण्ड के समान ही समझना। कालोदधिसमुद्र को चारों ओर से घेरे हुए पुष्करवर नामका द्वीप है। इसके मध्य भाग में मानुषोत्तर नाम का एक पर्वत है, जो कंकण के समान गोल है। इसने चारों तरफ सम्पूर्ण दिशाओं में पडे हए मनुष्यक्षेत्र को घेर रखा है। यह स्वर्णमय मानुषोत्तर पर्वत सत्रह सौ इक्कीस (१७२१) योजन ऊँचा है, तथा भूभाग में चार सौ तीस (४३०) योजन एक कोस प्रविष्ट रहा है। इस पृथ्वी पर इसका विस्तार एक हजार बाईस (१०२२) योजन तथा मध्य से सात सौ तेईस (७२३) योजन और ऊपर चलकर चार सौ चौबीस (४२४) योजन है। मनुष्यक्षेत्र के भीतर की तरफ का प्राकार सपाट दीवार के सदृश है, तथा बाहर की तरफ का प्राकार आधी नारङ्गी के तुल्य ढलवाँ होता है। इसीलिए इस निमित्त से ही पुष्करवर द्वीप के दो विभाग हो गये हैं। इस सूत्र का सारांश यह है कि-पुष्करवरद्वीप के मध्य भाग में मानुषोत्तर पर्वत आया है। यह किले की भाँति वलयाकार-गोल है। इसीलिए पुष्करवरद्वीप के दो विभाग पड़ जाते हैं। इस द्वीप का विस्तार कुल सोलह लाख (१६०००००) योजन का है। इसके दो विभाग हो जाने से प्रथम विभाग आठ लाख (८,००,०००) योजन का है और दूसरा विभाग भी आठ लाख (८,००,०००) योजन प्रमाण का है। इन दो विभागों में से प्रथम अर्धविभाग में ही क्षेत्र और पर्वत हैं।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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