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________________ ३।११ ] तृतीयोऽध्यायः [ ४३ लघु हिमवन्त पर्वत : ____ इस भरतक्षेत्र के पश्चात् हिमवन्त नामक पर्वत है। इस पर्वत के ऊपर पद्म नामक द्रह है। इस पद्मद्रह में पृथ्वीकाय का बना हुआ महापद्म यानी महाकमल है। इस महाकमल की कणिका में लक्ष्मीदेवी का भवन है। उसमें लक्ष्मीदेवी रहती है। उस पर ग्यारह (११) कूट यानी शिखर हैं। उसमें पहले सिद्धायतन नाम के कूट-शिखर में स्थित सिद्धमन्दिर में जिनेश्वर भगवान की अष्टोत्तर शत यानी १०८ मूत्तियाँ-प्रतिमाएँ हैं। छप्पन अन्तर्वीप: हिमवन्त पर्वत से गजदन्त के प्राकार की चार दाढ़ा निकलती हैं। उनमें से दो दाढ़ा इस पर्वत के पूर्व छेड़े (छोर) से निकलकर लवरणसमुद्र में आती हैं, तथा दो दाढ़ा पर्वत के पश्चिम छेड़े (छोर) से निकलकर लवणसमुद्र में आती हैं। प्रत्येक दाढ़ा पर सात-सात द्वीप होने से कुल अट्ठावीस (२८) द्वीप हैं। इसी तरह अट्ठावीस द्वीप शिखरी नामक पर्वत से निकलती हुई चार दाढ़ानों के ऊपर हैं। सब मिलकर कुल छप्पन (५६) द्वीप हैं। ये सभी द्वीप लवणसमुद्र के भीतर यानी अन्दर होने से अन्तर्वीप कहलाते हैं। हैमवत क्षेत्र: इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के पश्चात् हिमवन्त नामक पर्वत आता है। बाद में हैमवत नामक क्षेत्र आता है। उसके बराबर मध्य में वैताढय पर्वत आया हुआ है। वह वृत्त यानी गोलाकार रूप होने से वृत्तवैताढ्य कहा जाता है। उसके आसपास सुन्दर पद्मवेदिका और बगीचा है तथा उसके स्वामी देव का प्रासाद है। हैमवत क्षेत्र में रोहिताशा और रोहिता ये दोनों नदियाँ हैं। उसमें रोहिताशा नदी पद्मद्रह में से उत्तर दिशा की तरफ निकलती है। यह नदी आगे जाकर हैमवन्त क्षेत्र के वृत्त वैताढ्य पर्वत से दो गाउ दूर रहकर पश्चिम दिशा की तरफ मुड़कर के लवरणसमुद्र में जा मिलती है। तथा रोहिता नदी महाहिमवन्त पर्वत के महापद्मद्रह में से निकल कर दक्षिणदिशा की तरफ बहती है। वह आगे जाती हुई वृत्तवैताढ्यपर्वत से दो गाउ दूर रहकर पूर्व दिशा की तरफ मुड़ती हुई लवणसमुद्र में जाकर मिलती है। महाहिमवन्त पर्वत : हैमवत नामक क्षेत्र के पश्चात् उत्तरदिशा में महाहिमवन्त नामक पर्वत है। उसके ऊपर मध्य भाग में महापद्म नामक द्रह है। उसमें स्थित कमल की कणिका पर श्रीदेवी यानी लक्ष्मीदेवी का भवन है। तथा इस पर्वत के ऊपर पूर्व और पश्चिम की श्रेणी में पाठ कूट-शिखर हैं। उनमें पहले सिद्धायतन कट के ऊपर जिनेश्वर भगवान के मन्दिर-प्रासाद में १०८ जिनमुत्तियाँजिनप्रतिमाएँ हैं। शेष कूटों पर उनके स्वामी देवों और देवियों के प्रासाद हैं। हरिवर्ष क्षेत्र : ___ महाहिमवन्त पर्वत के पश्चाद् उत्तर दिशा में हरिवर्ष नाम का क्षेत्र पाता है। उसके मध्य भाग में वृत्त वैताढ्य नामक गोलाकार पर्वत है। इस क्षेत्र में हरिकान्ता और हरिसलिला नाम की
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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