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________________ ३।१ ] तृतीयोऽध्यायः मोटाई समान रूप है। अर्थात् एक सरीखी बीस-बीस हजार योजन प्रमाण है और जो सात घनवात तथा सात तनवात-वलय हैं उनकी मोटाई सामान्य रूप से असंख्यात योजन की होने पर भी समान नहीं है। पहली रत्नप्रभा भूमि का घनवातवलय तथा तनवात-वलय असंख्यात योजन है। उससे दूसरी शर्कराप्रभा भूमि के घनवातवलय और तनवातवलय विशेषाधिक हैं एवं यावत् सातवीं महातम:प्रभा भूमि के घनवात तथा तनवातवलय की मोटाई विशेषाधिक है। यही क्रम आकाशप्रदेश के विषय में भी है। * अधोलोक में रत्नप्रभा आदिक सात भूमियाँ-पृथ्वियाँ हैं। उन के नाम प्रभा की अपेक्षा से अन्वर्थ हैं। जिसमें रत्नों की प्रभा पाई जाय उसे रत्नप्रभा कहते हैं। इस पहली रत्नप्रभा नरक पृथ्वी में रत्न, वज्र, वैर्य, लोहित, मसारगल्ल इत्यादि सोलह प्रकार के रत्नों की प्रभा पाई जाती है। इसलिए रत्नप्रभा नाम की सार्थकता है। दूसरी शर्कराप्रभा नरक पृथ्वी में कंकरों की बहुलता है। इसलिए शर्कराप्रभा नाम की सार्थकता है। तीसरी वालुकाप्रभा नरक पृथ्वी में वालुका-रेती की मुख्यता है। इसलिए वालुकाप्रभा नाम को सार्थकता है। चौथी पंकप्रभा नरक में कादव-कीचड़ की प्रधानता है इसलिए पंकप्रभा नाम की सार्थकता है। पाँचवीं धमप्रभा नरक पृथ्वी में धम अर्थात धम्र की बहलता है। इसलिए धूमप्रभा नाम की सार्थकता है। छठी तमःप्रभा नरक पृथ्वी में तमः अर्थात् अन्धकार की विशेषता है। इसलिए तमःप्रभा नाम की सार्थकता है तथा सातवीं महातमःप्रभा नरक पृथ्वी में प्रचुर अन्धकार की मुख्यता है। इसलिए महातमःप्रभा यानी तमस्तमःप्रभा नाम की सार्थकता है। इन सातों पृथ्वियों के रूढ़िनाम अनुक्रम से इस प्रकार हैं-(१) घम्मा, (२) वंशा, (३) शैला (मेघा), (४) अंजना, (५) रिष्ठा (अरिष्ठा) (६) माघव्या और (७) माधवी हैं । क्रमश: ये सातों नाम सातों भूमि-पृथ्वियों के जानना। रत्नप्रभा नारक भूमि के तीन काण्ड (करण्ड) अर्थात् तीन विभाग-हिस्से हैं। सबसे ऊपर का प्रथम खरकाण्ड प्रचुर रत्नमयी है। उसकी मोटाई-सोलह हजार (१६०००) योजन प्रमाण है। उसके नीचे का दूसरा काण्ड पङ्कबहुल अर्थात् कर्दममय चौरासी हजार [८४०००] योजन प्रमाण है। उसके नीचे का तीसरा काण्ड जलबाहुल्य अर्थात् पानी से भरा हुआ है, जिसकी मोटाई अस्सी हजार (८००००) योजन प्रमाण है। उक्त तीनों काण्ड सम्मिलित हो जाने से पहली रत्नप्रभा नरक भूमि की सम्पूर्ण मोटाई एक लाख और अस्सी हजार (१,८०,०००) योजन प्रमाण है। दूसरी शर्कराप्रभा नरक भूमि से लेकर यावत् सप्तमी तमस्तमःप्रभा नरकभूमि तक ऐसे काण्ड नहीं हैं। क्योंकि कंकर और रेती इत्यादि जो-जो पदार्थ हैं, वे समस्त सदृश रूप हैं। रत्नप्रभा नरक का प्रथम काण्ड दूसरे काण्ड पर और दूसरा काण्ड तीसरे काण्ड पर स्थित है। तीसरा काण्ड घनोदधिवलय पर, घनोदधि घनवातवलय पर, घनवात तनवातवलय पर तथा तनवात अाकाश पर प्रतिष्ठित है। किन्तु अाकाश किसी पर भी स्थित न होकर आत्मप्रतिष्ठित है।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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