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________________ ६२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ हिन्दी पद्यानुवाद * भवनपति देवों का जघन्य प्रायुष्य एवं व्यन्तर देवों का जघन्य और उत्कृष्ट प्रायुष्य * 卐 मूलसूत्रम् । ४-४५ ॥ व्यन्तराणां च ॥ ४-४६ ॥ परा पल्योपमम् ॥ ४-४७ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद भवनपति देवायु का ये, जघन्य दस सहस्र वर्ष है । तथा व्यन्तर देवायु का, जघन्य दस सहस्र वर्ष है ।। पुनः व्यन्तर देवायु, उत्कृष्ट एक पल्योपम का । इस तत्त्वार्थ सूत्र में भी, कहा प्रमाण ए सर्व का ।। ३६ ।। * ज्योतिष्क देवों का जघन्य और उत्कृष्ट प्रायुष्य * 卐 मूलसूत्रम् ज्योतिष्कारणामधिकम् ॥ ४-४८ ॥ ग्रहाणामेकम् ॥ ४-४६ ॥ नक्षत्राणामर्धम् ॥ ४-५० ॥ तारकाणां चतुर्भागः ॥ ४-५१ ॥ जघन्या त्वष्टभागः॥४-५२॥ चतुर्भागः शेषाणां ॥ ४-५३ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद ज्योतिषचक्रे चन्द्र-सूर्य, उत्कृष्टायु पल्योपम की । लाख एवं सहस्राधिक, मान धरते वर्ष का । तथा ग्रहों की उत्कृष्टायु, एक पल्योपम पूर्ण है । नक्षत्रों का भी उत्कृष्टायु, अर्धपल्योपम है ।। ४० ।। तारामों की उत्कृष्ट स्थिति, पल्य. चौथे भाग में । फिर कही जघन्य स्थिति, पल्योपमाष्टम भाग में । इस तरह ज्योतिष देव की, जघन्योत्कृष्ट स्थिति कही। आगमशास्त्रानुसार ये, जान तत्त्वार्थे सही ।। ४१ ।। तत्त्वार्थाधिगमे सूत्रे, हिन्दीपद्यानुवादके । चतुर्थोऽध्यायपूर्णोऽयं, देवानां स्थितिबोधकः ।। ॥ इति श्री तत्त्वार्थाधिगमसूत्र के चतुर्थ अध्याय का हिन्दी पद्यानुवाद पूर्ण हुआ ॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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