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________________ ८६ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ हिन्दी पद्यानुवाद * हिन्दी पद्यानुवाद देव वैमानिक के जो, मूल थकी दो भेद ग्रहे । उनमें कल्पोपपन्न के, द्वादश भेद संग्रहे ।। तथा कल्पातीत के भी, देव भेद चौदह कहे । ऊपर-ऊपर स्थान जिनके, सूत्रमहीं ये संग्रहे ।। ११ ।। प्रथम कल्प सौधर्म है, ईशान दूसरा कल्प है । तीसरा कल्प सनत्कुमार, माहेन्द्र चौथा कल्प है ।। ब्रह्मलोक कल्प पाँचवाँ, लान्तक छठा जानिये । सातवाँ महाशुक्र कल्प, सहस्रार आठवाँ मानिये ।। १२ ।। नवमा कल्प आनत और, प्राणत दसवाँ कल्प है। ग्यारहवाँ पारण तथा, बारहवाँ अच्युत कल्प है ।। नौ की संख्या अवेयक की, ग्रीवा स्थाने स्थिर रही। तथा विजय और वैजयन्त, जयन्त अपराजित सही ।। १३ ।। सर्वार्थसिद्ध ये देव पाँचों, अनुत्तर के जानिये । इम वैमानिक देवों के, भेद छब्बीस मानिये ॥ उनमें कल्पोपपन्न के, बारह नाम पूर्वे कहा। तथा कल्पातीत के भी, चौदह नाम पूर्वे कहा ।। १४ ।। * गति तथा स्थिति प्रादि का वर्णन ॐ मूलसूत्रम् स्थिति - प्रभाव - सुख - द्युति - लेश्या - विशुद्धीन्द्रियाऽवधिविषयतोऽधिकाः ॥४-२१॥ गति-शरीर-परिग्रहाभिमानतो होनाः ॥ ४-२२ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद स्थिति और प्रभाव सुख, तथा द्युति लेश्या भाव से । इन्द्रिय विशुद्धि अवधिविषय, बढ़ते क्रम प्रस्ताव से ।। गति एवं देह माने, परिग्रह तथा अभिमानता । उपरि उपरि पुण्यवर्धन, कारण से क्रमहीनता ॥ १६ ॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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