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________________ ६८ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ४।४२ ६ सूत्रार्थ-माहेन्द्रकल्पवासी देवों की जघन्य स्थिति दो सागरोपम से कुछ अधिक है ॥ ४-४१॥ + विवेचनामृत ॥ माहेन्द्रकल्पवर्ती देवों की जघन्यस्थिति का प्रमाण दो सागरोपम से कुछ अधिक है। अर्थात्-देवों की जघन्यस्थिति दो सागरोपम से कुछ अधिक जानना ।। (४-४१) ॐ मूलसूत्रम् परतः परतः पूर्वा पूर्वाऽनन्तरा ॥ ४-४२ ॥ * सुबोधिका टोका * माहेन्द्रात् परतः कल्पानां पूर्वा पराऽनन्तरा जघन्यास्थितिः भवति । माहेन्द्र परास्थितिः विशेषाधिकानि सप्त सागरोपमाणि सा ब्रह्मलोके जघन्यास्थितिः भवति । ब्रह्मलोके दश सागरोपमाणि परास्थितिः भवति । सा लान्तके जघन्या । एवमासर्वार्थसिद्धादिति । विशेषस्तु विजयादिषु चतुर्यु परा स्थितिः त्रयस्त्रिशत् सागरोपमाणि साऽजघन्योत्कृष्टा सर्वार्थसिद्ध इति ।। ४-४२ ॥ * सूत्रार्थ-चतुर्थ माहेन्द्र कल्प से आगे पहले कल्प की जो उत्कृष्ट स्थिति है वही आगे के कल्प की जघन्य स्थिति का प्रमाण हो जाता है ॥ ४-४२ ॥ ॐ विवेचनामृत पूर्व-पूर्व स्वर्ग-देवलोक में जो उत्कृष्ट स्थिति है वही आगे-आगे के स्वर्ग-देवलोक की जघन्य स्थिति समझनी चाहिए। सौधर्म स्वर्ग-देवलोक के देवों की जो जघन्यस्थिति है, इस अनुक्रम से यहाँ पर भी जानना। जैसे-पहले स्वर्गदेवलोक की एक पल्योपम की जघन्यस्थिति, दूसरे स्वर्गदेवलोक की उससे साधिक, तीसरे की दो सागरोपम की, चौथे की दो सागरोपम से अधिक, पांचवें की सात सागरोपम की, छठे की दस सागरोपम की, सातवें की चौदह सागरोपम की, आठवें की सत्रह सागरोपम की, नौवें की अठारह सागरोपम की, दसवें की उन्नीस सागरोपम की, ग्यारहवें की बीस सागरोपम की, बारहवें की इक्कीस सागरोपम की, नौ ग्रेवेयक में नीचे तीन की २२-२३-२४ सागरोपम की, मध्य के तीन की २५-२६-२७ सागरोपम की, ऊपर के तीन की २८-२९-३० सागरोपम की, चार अनुत्तर विमान की ३१ सागरोपम की तथा सर्वार्थसिद्ध विमान की ३३ सागरोपम की जघन्यस्थिति है।
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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