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________________ हिन्दी पद्यानुवाद ] तृतीयोऽध्यायः * नरक में परस्परोवीरित वेदना * 卐 मूलसूत्रम्- . . परस्परोदीरितदुःखाः ॥ ३-४ ॥ संक्लिष्टासुरोदीरितदुःखाश्च प्राक् चतुर्थ्याः ॥ ३-५ ॥ * नरक जीवों के प्रायुष्य को उत्कृष्ट स्थिति * ॐ मूलसूत्रम् तेष्वेक-त्रि-सप्त-दश-सप्तदश-द्वाविंशति-त्रयस्त्रिशत् सागरोपमाः सत्त्वानां परा स्थितिः ॥ ३-६ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद ये जीव नारक हैं परस्पर, दुःख से वैरी बने । उदीरणा करते निज दुःख की, क्षणिक भी न सुख लहे ॥ कृष्णलेश्यी असुरदेव, अति निर्दयी निज कर्म से । रत्नादि तीन नारकों को, दुःख देते अति त्रास से ॥ ५ ॥ एक तीन और सात दस, सत्तर सागरोपम की। बाईस और तैंतीस जानो, स्थिति नारक जीव की ।। पहली दूसरी तीसरी, चौथी पंचमी भूमि में । षष्ठी सप्तमी भूमि में, क्रम से कही यह शास्त्र में ।। ६ ।। + मूलसूत्रम् जम्बूद्वीप-लवरणादयः शुभनामानो द्वीप-समुद्राः ॥ ३-७॥ द्विद्धिविष्कम्भः पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥ ३८ ॥ तन्मध्ये मेरुनाभित्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीपः ॥ ३-६ ॥ * हिन्दी पद्यानुवाद प्राद्य जम्बूद्वीप सारे, द्वीप में प्रख्यात है। तथा सूत्र में भी साथ ये, लवणोदधि विख्यात है । दूसरे भी शास्त्र में है, असंख्य द्वीपोदधि महा । बहुश्रुत तथा गणधरों ने, शुभ नाम से इनको कहा ॥ ७ ॥
SR No.022533
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1995
Total Pages264
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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