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________________ [ ५१ १।२३ ] प्रथमोऽध्यायः (७) सातवें नरक में जघन्य से प्राधा कोस और उत्कृष्ट से १ कोस अवधिक्षेत्र की मर्यादा है। • भवनपति-व्यन्तर-ज्योतिष्क देवों में अवधिक्षेत्र इस प्रकार है * जिन देवों का अर्धसागरोपम से कम आयुष्य होता है, उनका उत्कृष्ट तिर्छालोक में संख्यात योजन का अवधिक्षेत्र है। उससे अधिक आयुष्य वाले देवों का असंख्यात योजन का अवधिक्षेत्र है। * उत्कृष्ट ऊर्ध्वलोक में भवनपतिदेवों का अधिक्षेत्र सौधर्मदेवलोक तक है तथा व्यन्तरज्योतिष्कदेवों का अवधिक्षेत्र संख्यात योजन तक है। * उत्कृष्ट अधोलोक में भुवनपतिदेवों का अवधिक्षेत्र तीसरे नरक वालुकाप्रभा तक है तथा व्यन्तर-ज्योतिष्कदेवों का अवधिक्षेत्र संख्यात योजन तक है। * ऊर्ध्व प्रादि तीनों में भवनपतिदेवों का तथा व्यन्तरदेवों का जघन्य अवधिक्षेत्र पच्चीस योजन का है एवं ज्योतिष्कदेवों का जघन्य अवधिक्षेत्र संख्यात योजन तक का है। • वैमानिक देवों में अवधिक्षेत्र इस प्रकार है * सौधर्म देवलोक के देवों का तथा ईशान देवलोक के देवों का अवधिक्षेत्र नीचे पहली रत्नप्रभा पृथ्वी के अन्त तक और ऊपर में अपने विमान की ध्वजा तक एवं तिर्यग् असंख्य योजन तक है । अर्थात्-वहाँ तक अवधिज्ञान से देख सकते हैं। * सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक के देवों का अवधिज्ञान नीचे दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी के अन्त तक तथा ऊपर में अपने विमान की ध्वजा तक एवं तिर्यग्-तिच्र्छ असंख्य योजन तक अवधिज्ञान से देख सकते हैं। इस तरह क्रमशः आगे बढ़ते हुए अनुत्तरवासी देव सम्पूर्ण रूप से लोकनाड़ी को अवधिज्ञान से देख सकते हैं। जिन देवों में क्षेत्र से अवधिज्ञान का विषय समान है, उन देवों में भी ऊपर-ऊपर के प्रस्तर तथा विमानों की अपेक्षा अधिक-अधिक अवधिज्ञान होता है। इसी तरह अवधिज्ञान की विशुद्धि भी ऊपर-ऊपर अधिक-अधिक होती है ।। २२ ॥ * क्षयोपशमप्रत्ययावधिज्ञानस्य स्वामी * यथोक्तनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम् ॥ २३ ॥ ....... * सुबोधिका टीका * अत्र यथोक्तनिमित्तः क्षयोपशमनिमित्त इत्यर्थः। क्षयोपशमनिमित्तमवधिज्ञानमस्ति । शेषाणामिति नारक-देवेभ्यः शेषाणां तिर्यग्योनिजानां मनुष्याणां च अवधिज्ञानावरणीयस्य कर्मणः क्षयोपशमाभ्यां अवधिज्ञानं जायते। तद् षड्विधं भवति । तद्यथा-[१] अनुगामिकमवधिज्ञानं, [२] अननुगामिकमवधिज्ञानं, [३] वर्द्धमान
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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