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________________ परिशिष्ट-५ Ammmmmmmmmmmmm ? है * तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् * .. (इतिनामसार्थकमेव) तत्त्व-अर्थ-तत्त्वार्थ-अधिगम-सूत्रम् - तत्त्वः - जीवाजीवादीनां पदार्थानां यथावस्थितस्वभावस्तत्त्वः । अर्थात्-पदार्थानां स्वनैसर्गिकस्वरूपेषु यथास्थितिस्तत्त्वः । संसारे जीवाः जीवस्वरूपेषु अजीवा: अजीवस्वरूपेषु नित्यं वर्तन्ते इति । यत् क्वचिदपि जीवाः अजीवाः नैव भवन्ति, अजीवाश्च जीवाः नैव जायन्ते । हिन्दी भावार्थजीव और अजीव दोनों पदार्थों की अपने स्वभाव में स्थिति तत्त्व है। जो पदार्थ जिस भाव में नैसर्गिक है, उसका स्वरूप अपरिवर्तनीय है । उसे तत्त्व कहते हैं । जीव कभी अजीव में परिवर्तित नहीं होते तथा अजीव कभी जीव में परिवर्तित नहीं होते। उस स्थिति का नाम तत्त्व है । अर्थः - ज्ञायते इति अर्थः । यन्निश्चितं निश्चीयते यत्र तदर्थः । तत् वै यदर्थं निर्णीयमाप्नोति तदर्थस्तत्त्वार्थः । पदार्थानां वस्तुतः निर्णय येन क्रियते तदर्थः । हिन्दी भावार्थनिश्चित जो जाना जावे, उसे अर्थ कहा गया है। जो निश्चय निश्चित किया जाय, अर्थात् जिस निश्चयात्मक सत्य को निश्चित कर कहा जाये उसे अर्थ कहते हैं। ( १८ )
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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