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________________ ॐ ह्रीं अहँ नमः ॥ पूर्वधरश्रीमदुमास्वातिवाचकविरचित-तत्त्वार्थाधिगमसूत्राणां स्वोपज्ञभाष्यगत सम्बन्धकारिका टीकाकर्ता : जैनधर्मदिवाकर, शास्त्रविशारद, कविभूषण आचार्य श्रीमद् विजय सुशीलसूरि महाराज ००० अर्हदङ्घ्रियुगं नत्वा, सुशीलसूरिणा मया । सम्बन्धकारिकायाः वै, लघ्वीटीका हि क्रियते ॥ मनुष्य-जन्म की सार्थकता सम्यग्दर्शनशुद्ध यो ज्ञानं विरतिमेव चाप्नोति । दुःखनिमित्तमपीदं, तेन सुलब्धं भवति जन्म ॥१॥ टीका : यः पुरुषः सम्यग्दर्शनशुद्धं सम्यग्दर्शनद्वाराशुद्धं ज्ञानं विरतिं च प्राप्नोति प्राप्नोति तस्य पुरुषस्य दुःखस्य निमित्तभूतमिदं जन्मापि लाभप्रदायकं सिद्धयति ॥ १॥ अर्थ : इस संसार में जन्म लेना यह दुःख का ही कारण है, फिर भी सम्यग्दर्शन से शुद्ध ज्ञान और शुद्ध संघम-चारित्र प्राप्त करने वाले जीव-आत्मा का मनुष्य-जन्म सफल है ॥ १ ॥ हिन्दी पद्यानुवाद : • सम्यग्दर्शन से विशुद्ध कर ज्ञान अरु चारित्र को , अजित करता जो नरभव में, अनुपम तीन रतन को। प्राप्य जो अति दुःख से है फिर दुःख का कारण यही , नरभव सफल है उसी जन का, हो भाव निर्मल मन सही ।। कर्म-विमुक्त होने की सद्प्रेरणा जन्मनि कर्मक्लेश-रनुबद्धेऽस्मिस्तथा प्रयतितव्यम् । कर्मक्लेशाभावो, यथा भवत्येष परमार्थः ॥ २ ॥ टीका : कर्मणां कषायाणां अनुबन्धवति अस्मिन् जन्मनि यया रीत्या कर्मक्लेशानामभावो भवेत् तथा प्रयत्नं कुर्यादित्येव परमार्थः ।। २ ।।
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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