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________________ 卐 मूलसूत्रम् सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ॥ ३० ॥ * हिन्दीपद्यानुवाद द्रव्य और पर्याय सारे, जानते हैं त्रिकाल के। रुकता नहीं है जो किसी से, मिटता नहीं जो प्राय के ।। ज्ञान पंचम वो कहा है, सर्वज्ञदेव जिनेश्वरे । प्राप्त कर उस ज्ञान को, कर्माष्ट क्षय कर शिववरे ।। २१ ।। 卐 मूलसूत्रम् ____ एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्व्यः ॥ ३१ ॥ * हिन्दीपद्यानुवाद मति श्रुत और अवधि मनः,-पर्याय चौथा ज्ञान भी। प्राप्त कर सकता है प्राणी, एक ही समये सभी ।। ये ज्ञान पाँचों एक ही क्षण, जीव पा सकता नहीं । पर तत्त्ववेदी तत्त्व की, अनुभूति पाता है सही ।। २२ ।। 卐 मूलसूत्रम् मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च ॥ ३२ ॥ सदसतोरविशेषाद् यदृच्छोपलब्धरुन्मत्तवत् ॥ ३३ ॥ * हिन्दीपद्यानुवाद मति-श्रुत-अवधिज्ञान ये, अज्ञानरूप भी होते हैं । कहते मति-श्रुत अज्ञान, अवधि विभंग ज्ञान से ।। सत् असत् का भेद जिसको, है नहीं अविनय करे । उन्मत्त के सम जो क्रिया कर, मूढ़ता को संवरे ।। २३ ।। 5 मूलसूत्रम् नेगम-संग्रह-व्यवहारर्जुसूत्रशब्दानयाः ॥ ३४ ॥ आद्यशब्दौ द्वि-त्रि-भेदौ ॥ ३५ ॥
SR No.022532
Book TitleTattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages166
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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