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________________ तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वयः एको महान् पद्महदो नाम हूदः प्रज्ञप्तः पूर्वापरायतः उत्तरदक्षिणविस्तीर्णः एक योजनसहस्रायामेन पश्चयोजनशतानि विष्कम्भेन दशयोजनान्युद्वेधेन अच्छः। भाषा टोका- उस बहुत सुन्दर पृथ्वी भाग के ठीक बीचों बीच एक पद्महूद नाम का बड़ा भारी तालाव है । यह पूर्व से पश्चिम तक एक सहस्र योजन लम्बा और उत्तर से दक्षिण तक पांच सौ योजन चौड़ा है, और दश योजन गहरा है। तन्मध्ये योजनं पुष्करम् । तस्स पउमदहस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थं महं एगे पउमे पएणत्ते, जोअणं आयामविक्खंभेणं अद्धजोअणं बाहल्लेणं दसजोभणाई उव्वेहेणं दोकोसे ऊसिए जलंताओ साइरेगाइं दसजोभणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता। जम्बू० पद्महूदाधिकार स० ७३. छाया- तस्य पद्मह दस्य बहुमध्यदेशभागः अत्रान्तरे महदेकं पद्म प्रज्ञप्तं, एकं योजनमायामतो विष्कम्भतश्च अर्द्धयोजनं बाहुल्येन दशयोजनान्युद्वेधेन द्वौ क्रोशावुच्छितं जलान्तात् , एवं सातिरेकाणि दश योजनानि सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तानि । भाषा टीका- इस पद्म सरोवर के ठीक बीचों बीच एक बड़ा भारी कमल बतलाया गया है । इसकी लम्बाई एक योजन है और चौड़ाई आधा योजन है। इसकी ऊंचाई दश योजन है, और दो कोस यह जल के ऊपर है। इसी वास्ते इसके सब अवयवों को दश योजन से कुछ अधिक मानते हैं। तद्विगुणद्विगुणा हृदाः पुष्कराणि च । ३, १८. महाहिमवंतस्य बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगे महापउम
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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