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________________ तत्त्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : १ यस्य श्रदारिकशरीरं तस्य तैजसशरीरं नियमादस्ति । यस्य पुनः तैजसशरीरं तस्य औदारिकशरीरं स्यादस्ति स्यान्नास्ति । एवं कार्मणशरीरेऽपि । यस्य भदन्त ! वैक्रियिक शरीरं तस्य आहारकशरीरं यस्य श्राहारकशरीरं तस्य वैक्रियिकशरीरं ? गौतम ! यस्य वैक्रियिकशरीरं तस्य आहारकशरीरं नास्ति । यस्य पुनः आहारकशरीरं तस्य वैक्रियिकशरीरं नास्ति । तैजसकार्मणे यथा औदारिकः सम्यक् तथैव । आहारकशरीरेणापि सम्यक् तैजसकार्मणे तथैव उच्चारितव्ये | यस्य भदन्त ! तैजसशरीरं तस्य कार्मणशरीरं यस्य कार्मणशरीरं तस्य तैजसशरीरं ? गौतम ! यस्य तैजसशरीरं तस्य कार्मणशरीरं नियमादस्ति, यस्यापि कार्मणशरीरं तस्यापि तैजसशरीरं नियमादस्ति । प्रश्न - -भगवन् ! जिसके औदारिक शरीर हो उसके और क्या २ हो सकते हैं ? उत्तर - गौतम ! जिसके औदारिक शरीर हो उसके वैक्रियिक शरीर हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता। जिसके वैक्रियिक शरीर हो उसके औदारिक शरीर हो भी और न भी हो । ६० ] प्रश्न है, और क्या आहारक शरीर वाले के औदारिक शरीर होता है ? - भगवन् ! जिसके औदारिक शरीर हो क्या उसके आहारक शरीर होता उत्तर - गौतम ! जिसके औदारिक शरोर हो उसके अहारक शरीर हो भी या न भी हो, किन्तु जिसके आहारक शरीर हो उसके औदारिक शरीर भी नियम से होता है । प्रश्न - भगवन् ! क्या औदारिक शरीर वाले के तैजस होता है और तैजस वाले के औदारिक शरीर होता है । उत्तर - - गौतम ! जिसके औदारिक शरीर हो उसके तैजस नियम से होता है, किन्तु जिसके तैजस हो उसके औदारिक शरीर हो भी अथवा न भी हो । इसी प्रकार कार्मण शरीर का भी नियम है। प्रश्न - -भगवन् ! क्या जिसके वैक्रियिक शरीर हो उसके आहारक शरीर होगा और जिसके आहारक शरीर हो उसके वैक्रियिक शरीर होगा ?
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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