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________________ तत्वार्थ सूत्र जैनाऽऽगमसमन्वय : कम्मासरीरप्पयोग बंधे इए अपज्जवसिए वा एवं जहा तेयगस्स । ५८ ] छाया - अणाइए सपज्जवसिए अणा व्याख्याप्रज्ञप्ति सप्तक ८ उ० ९ सू० ३५१. तैजसशरीरप्रयोगवन्धः भदन्तः ! कालतः कियच्चिरं भवति ? गौतम ! द्विविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - अनादिकः वा अपर्यवसितः नादिकः वा सपर्यवसितः । कार्मणशरीर प्रयोग बन्धः .... अनादिकः सपर्यवसितः श्रनादिकः पर्यवसितः वा एवं यथा तैजसः । - प्रश्न - भगवन् ! तैजस शरीर का प्रयोग बंध समय की अपेक्षा कितनी देर तक होता है। उत्तर - गौतम ! वह दो प्रकार का होता है। अनादिक और अपर्यवसित (अनन्त) तथा अनादिक सपर्यवसित ( सान्त) तेजस शरीर के ही समान कार्मण शरीर का प्रयोगबंध भी समय की अपेक्षा दो प्रकार का होता है । (अभव्यों के ) अनादि और अनन्त तथा ( भव्यों के ) अनादि तथा सान्त | संगति - तेजस और कार्मण शरीर सभी संसारी जीवों के होते हैं। यह भव्यों के अनादि और सान्त होते हैं । किन्तु अभव्यों के यह अनादि और अनन्त होते हैं । "" 'तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्याऽऽचतुर्थ्य " २, ४३. जस्सयां भंते! ओरालियसरीरं ? गोयमा ! जस्स ओरालियसरीरं तस्स वेडव्वियसरीरं सिय अस्थि सिय खत्थि, जस्स वेउव्वियसरीरं तस्स ओरालियसरीरं सिय अत्थि सिय णत्थि । जस्सां भंते! ओरालियसरीरं तस्स आहारगसरीरं जस्स - हारगसरीरं तस्स ओरालिय सरीरं ? गोयमा ! जस्स ओरालिय
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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