SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० ] तत्वार्थसूत्रजैनाऽऽगमसमन्वय : छाया कार्माणशरीरकायप्रयोगः । भाषा टीका - ( विग्रह गति में ) कार्माण शरीर के काय का प्रयोग होता है । 1 संगति - दूसरा शरीर ग्रहण करने के लिये की जाने वाली गति को विग्रह गति कहते हैं । जिस प्रकार चारों गतियों में से मनुष्य तिर्यश्च गति में श्रदारिक शरीर तथा देव नरक गति में वैक्रियिक शरीर साथ रहता है, उसी प्रकार विग्रह गति में कार्माण शरीर का ही काय बनता है और उसी का प्रयोग जीव करता है । 66 अनुश्रेणिः गतिः । " छाया २. २६ परमाणुपोग्गलाणं भंते! किं अणुसेढीं गती पवत्तति विसेटिं गती पवत्तत्ति ? गोयमा ! अणुसेढीं गती पवत्तति नो विसेटिं गती पवत्तति ? दुपए सियाणं भंते! खंधाणं असेढीं गती पवत्तति विसेढीं गती पवत्तति एवं चेव, एवं जाव अतपएसि याणं खंधाणं । नेरइयाणं भंते! किं अणुसेढीं गती पवत्तति एवं विसेढीं गती पवत्तति एवं चेव एवं जाव वेमाणियाणं । व्याख्याप्रज्ञप्ति शतक २५, उ० ३ सू० ७३०. परमाणुपुद्गलानां भदन्त ! किं अनुश्रेणिं गतिः प्रवर्तते विश्रेणिं गतिः प्रवर्तते ? गौतम! अनुश्रेणिं गतिः प्रवर्तते नो विश्रेणिं गतिः प्रवर्तते । द्विप्रदेशिकानां भदन्त ! स्कन्धानां अणुश्रेणिं गतिः प्रवर्तते विश्रेणिं गतिः प्रवर्तते एवं चैव, एवं यावत् अनन्तप्रदेशिकानां स्कन्धानाम्। नेरयिकाणां भदन्त, किं अनुश्रेणिं गतिः प्रवर्तते एवं विश्रेणिः गतिः प्रवर्तते एवं चैव, एवं यावत् वैमानिकानाम् । - भगवन् ! परमाणु और पुद्गलों की गति अनुश्रण होती हैं अथवा विश्रेणि (श्रेणि विरुद्ध) होती है ? प्रश्न - उत्तर - गौतम ! उनकी गति अनुश्रेणि ही होती है विश्रेणि नहीं होती । प्रश्न - - भगवन् ! दो प्रदेश बाले पुद्गल स्कन्धों की गति अनुश्रेणि होती है। थवा विरिण ?
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy