SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयाध्याय : विभंगज्ञानलब्धि; क्षयोपशमिक चक्षुदर्शनलब्धि, अचक्षुदर्शनलब्धि, अवधिदर्शनलब्धि, सम्यग्दर्शनलब्धि, मिथ्यादर्शनलब्धि, सम्यक्मिध्यादर्शनलब्धि, सामायिकचारित्रलब्धि, छेदोपस्थापनालब्धि, परिहारविशुद्धिकलब्धि, सूक्ष्मसाम्परायचारित्रलब्धि, चारित्राचारित्रलब्धि; क्षयोपशमिक दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि, क्षयोपशमिक वीर्यलब्धि, इसी प्रकार पंडितवीर्यलब्धि, बालवीर्यलब्धि, बालपंडितवीर्यलब्धि; क्षयोपशमिक कर्णेन्द्रियलब्धि से लगाकर क्षयोपशमिक स्पर्शनेन्द्रियलब्धि तक; क्षयोपशमिक आचारांगधारी, इसी प्रकार सूत्रकृतांगधारी, स्थानांगधारी, समवायांगधारी, व्याख्याप्रज्ञप्तिधारी, ज्ञाताधर्मकथांगधारी, उपासकदशांगधारी, अन्तकृद्दशांगधारी, अनुत्तरोपपातिकदशांगधारी, प्रश्नव्याकरणांगधारी, विपाकश्रुतधारी, क्षयोपशमिक दृष्टिवादधारी, क्षयोपशमिक नवपूर्व से लगाकर क्षयोपशमिक चतुर्दश पूर्व तक धारण करने वाले, क्षयोपशमिक गणि और क्षयोपशमिक वाचक । यह क्षयोपशम निष्पन्न है। इस प्रकार क्षयोपशमिक भाव का वर्णन हुआ। पारिणामिक भाव किसे कहते हैं ? वह दो प्रकार का होता है-सादि पारिणामिक और अनादि पारिणामिक । सादि पारिणामिक किसे कहते हैं ? वह अनेक प्रकार का बतलाया गया है -पुरानी शराब, पुराना गुड़, पुराना घी और पुराने चावल, बादल, अभ्रवृक्ष (झाड़ के आकार में परिणमित बादल), सन्ध्या, गन्धर्वो के नगर, उल्कापात, दिशाओं का जलना, गरजती हुई बिजली का शब्द, शुक्लपक्ष के प्रथम तीन दिन में सन्ध्या समय सूर्य की प्रभा तथा चन्द्रमा की प्रभा का एकत्र होना (यूपक), एक ही दिशा में थोड़े थोड़े अन्तर से बिजली की सी चमक का दिखाई देना-भूत प्रत आदि का चमत्कार (यक्षादीप्तक), धुंए के समान दूर से धुंधला दिखाई देने वाला पदार्थ कुहरा (धूमिका ), पाला (महिका), धूल के उड़ने के कारण उत्पन्न हुआ अन्धकार आंधी (रज उद्घात), चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, चन्द्रमा के आसपास का मण्डल (चन्द्रपरिवेष), सूर्य के आस पास का मण्डल (सूर्यपरिवेष ), चन्द्रमा के सामने दूसरे चन्द्रमा का दिखलाई देना-चन्द्रमा की परछाई या प्रतिबिम्ब (प्रतिचन्द्र), सूर्य के सामने दूसरे सूर्य का दिखलाई देना-सूर्य की परिछाई या प्रतिविम्ब (प्रतिसूर्य), इन्द्र धनुष, इन्द्रधनुष के टुकड़े, आकाश में अकस्मात् दिखाई देने वाली भयङ्कर ज्वाला (कपिहसित), बिना बादलों की बिजली (अमोघ); भरत आदि क्षेत्र. भरत आदि
SR No.022531
Book TitleTattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
PublisherLala Shadiram Gokulchand Jouhari
Publication Year1934
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy